Thursday, June 24, 2010

(स्वामी विवेकानन्द)

मेरा आदर्श अवश्य ही थोडे से शब्दों में कहा जा सकता है - मनुष्य जाति को उसके दिव्य स्वरूप का उपदेश देना, तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसे अभिव्यक्त करने का उपाय बताना। (वि.स. ४/४०७) मेरा आदर्श अवश्य ही थोडे से शब्दों में कहा जा सकता - है मनुष्य जाति को उसके दिव्य स्वरूप का उपदेश देना, तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसे अभिव्यक्त करने का उपाय बताना. (वि.स. 4 407 /)

जब कभी मैं किसी व्यक्ति को उस उपदेशवाणी (श्री रामकृष्ण के वाणी) के बीच पूर्ण रूप से निमग्न पाता हूँ, जो भविष्य में संसार में शान्ति की वर्षा करने वाली है, तो मेरा हृदय आनन्द से उछलने लगता है। जब कभी मैं किसी व्यक्ति को उस (उपदेशवाणी श्री रामकृष्ण के वाणी) के बीच पूर्ण रूप से निमग्न पाता हूँ, जो भविष्य में संसार में शान्ति की वर्षा करने वाली है, तो मेरा हृदय आनन्द से उछलने लगता है. ऐसे समय मैं पागल नहीं हो जाता हूँ, यही आश्चर्य की बात है। ऐसे समय मैं पागल नहीं हो जाता हूँ, यही आश्चर्य की बात है.
(वि.स. १/३३४, ६ फरवरी, १८८९) (1889 वि.स. 1 / 334, 6 फरवरी)

'बसन्त की तरह लोग का हित करते हुए' - यहि मेरा धर्म है। 'बसन्त की तरह लोग का हित हुए करते' - यहि मेरा धर्म है. "मुझे मुक्ति और भक्ति की चाह नहीं। लाखों नरकों में जाना मुझे स्वीकार है, बसन्तवल्लोकहितं चरन्तः - यही मेरा धर्म है।" (वि.स.४/३२८) "मुझे मुक्ति और भक्ति की चाह नहीं. लाखों नरकों में जाना मुझे स्वीकार है, बसन्तवल्लोकहितं चरन्तः - यही मेरा धर्म है". (वि.स. 4 328 /)

हर काम को तीन अवस्थाओं में से गुज़रना होता है -- उपहास, विरोध और स्वीकृति। हर काम को तीन अवस्थाओं में से गुज़रना होता - है उपहास, विरोध और स्वीकृति. जो मनुष्य अपने समय से आगे विचार करता है, लोग उसे निश्चय ही ग़लत समझते है। जो मनुष्य अपने समय से आगे विचार करता है, लोग उसे निश्चय ही ग़लत समझते है. इसलिए विरोध और अत्याचार हम सहर्ष स्वीकार करते हैं; परन्तु मुझे दृढ और पवित्र होना चाहिए और भगवान् में अपरिमित विश्वास रखना चाहिए, तब ये सब लुप्त हो जायेंगे। (वि.स.४/३३०) इसलिए विरोध और अत्याचार हम सहर्ष स्वीकार करते; हैं परन्तु मुझे दृढ और पवित्र होना चाहिए और भगवान् में अपरिमित विश्वास चाहिए रखना, तब ये सब लुप्त हो जायेंगे. (वि.स. 4 330 /)

यदि कोई भंगी हमारे पास भंगी के रूप में आता है, तो छुतही बिमारी की तरह हम उसके स्पर्श से दूर भागते हैं। यदि कोई भंगी हमारे पास भंगी के रूप में आता है, तो छुतही बिमारी की तरह हम उसके स्पर्श से दूर भागते हैं. परन्तु जब उसके सीर पर एक कटोरा पानी डालकर कोई पादरी प्रार्थना के रूप में कुछ गुनगुना देता है और जब उसे पहनने को एक कोट मिल जाता है-- वह कितना ही फटा-पुराना क्यों न हो-- तब चाहे वह किसी कट्टर से कट्टर हिन्दू के कमरे के भीतर पहुँच जाय, उसके लिए कहीं रोक-टोक नहीं, ऐसा कोई नहीं, जो उससे सप्रेम हाथ मिलाकर बैठने के लिए उसे कुर्सी न दे! परन्तु जब उसके सीर पर एक कटोरा पानी डालकर कोई पादरी प्रार्थना के रूप में कुछ गुनगुना देता है और जब उसे पहनने को एक कोट मिल जाता - है वह कितना ही फटा - पुराना क्यों न हो - तब चाहे वह किसी कट्टर से कट्टर हिन्दू के कमरे के भीतर पहुँच जाय, उसके लिए कहीं रोक - टोक नहीं, ऐसा कोई नहीं, जो उससे सप्रेम हाथ मिलाकर बैठने के लिए उसे कुर्सी दे न! इससे अधिक विड्म्बना की बात क्या हो सकता है? इससे अधिक विड्म्बना की बात क्या हो सकता है? आइए, देखिए तो सही, दक्षिण भारत में पादरी लोग क्या गज़ब कर रहें हैं। आइए, देखिए तो सही, दक्षिण भारत में पादरी लोग क्या गज़ब कर रहें हैं. ये लोग नीच जाति के लोगों को लाखों की संख्या मे ईसाई बना रहे हैं। ये लोग नीच जाति के लोगों को लाखों की संख्या मे ईसाई बना रहे हैं. ...वहाँ लगभग चौथाई जनसंख्या ईसाई हो गयी है! ... वहाँ लगभग चौथाई जनसंख्या ईसाई हो गयी है! मैं उन बेचारों को क्यों दोष दूँ? मैं उन बेचारों को क्यों दोष दूँ? हें भगवान, कब एक मनुष्य दूसरे से भाईचारे का बर्ताव करना सीखेगा। (वि.स.१/३८५) हें भगवान, कब एक मनुष्य दूसरे से भाईचारे का बर्ताव करना सीखेगा. (385 1 / वि.स.)

प्रायः देखने में आता है कि अच्छे से अच्छे लोगों पर कष्ट और कठिनाइयाँ आ पडती हैं। प्रायः देखने में आता है कि अच्छे से अच्छे लोगों पर कष्ट और कठिनाइयाँ आ पडती हैं. इसका समाधान न भी हो सके, फिर भी मुझे जीवन में ऐसा अनुभव हुआ है कि जगत में कोई ऐसी वस्तु नहीं, जो मूल रूप में भली न हो। इसका समाधान न भी हो सके, फिर भी मुझे जीवन में ऐसा अनुभव हुआ है कि जगत में कोई ऐसी वस्तु नहीं, जो मूल रूप में भली न हो. ऊपरी लहरें चाहे जैसी हों, परन्तु वस्तु मात्र के अन्तरकाल में प्रेम एवं कल्याण का अनन्त भण्डार है। ऊपरी लहरें चाहे जैसी हों, परन्तु वस्तु मात्र के अन्तरकाल में प्रेम एवं कल्याण का अनन्त है भण्डार. जब तक हम उस अन्तराल तक नहीं पहुँचते, तभी तक हमें कष्ट मिलता है। जब तक हम उस अन्तराल तक नहीं पहुँचते, तभी तक हमें कष्ट मिलता है. एक बार उस शान्ति-मण्डल में प्रवेश करने पर फिर चाहे आँधी और तूफान के जितने तुमुल झकोरे आयें, वह मकान, जो सदियों की पुरानि चट्टान पर बना है, हिल नहीं सकता। (वि.स.१/३८९) एक बार उस - शान्ति मण्डल में प्रवेश करने पर फिर चाहे आँधी और तूफान के जितने तुमुल आयें झकोरे, वह मकान, जो सदियों की पुरानि चट्टान पर बना है, हिल नहीं सकता. (389 1 / वि.स.)

यही दुनिया है! यही दुनिया है! यदि तुम किसी का उपकार करो, तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे, किन्तु ज्यों ही तुम उस कार्य को वन्द कर दो, वे तुरन्त (ईश्वर न करे) तुम्हे बदमाश प्रमाणित करने में नहीं हिचकिचायेंगे। यदि तुम किसी का उपकार करो, तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे, किन्तु ज्यों ही तुम उस कार्य को वन्द कर दो, वे तुरन्त (ईश्वर न करे) तुम्हे बदमाश प्रमाणित करने में नहीं हिचकिचायेंगे. मेरे जैसे भावुक व्यक्ति अपने सगे - स्नेहियों द्वरा सदा ठगे जाते हैं। मेरे जैसे भावुक व्यक्ति अपने - सगे स्नेहियों द्वरा सदा ठगे जाते हैं.
(वि.स) (वि. स)


मेरी केवल यह इच्छा है कि प्रतिवर्ष यथेष्ठ संख्या में हमारे नवयुवकों को चीन जापान में आना चाहिए। मेरी केवल यह इच्छा है कि प्रतिवर्ष यथेष्ठ संख्या में हमारे नवयुवकों को चीन जापान में आना चाहिए. जापानी लोगों के लिए आज भारतवर्ष उच्च और श्रेष्ठ वस्तुओं का स्वप्नराज्य है। जापानी लोगों के लिए आज भारतवर्ष उच्च और श्रेष्ठ वस्तुओं का स्वप्नराज्य है. और तुम लोग क्या कर रहे हो? और तुम लोग क्या कर रहे हो? ... ... जीवन भर केवल बेकार बातें किया करते हो, व्यर्थ बकवाद करने वालो, तुम लोग क्या हो? जीवन भर केवल बेकार बातें किया करते हो, व्यर्थ बकवाद करने वालो, तुम लोग क्या हो? आओ, इन लोगों को देखो और उसके बाद जाकर लज्जा से मुँह छिपा लो। आओ, लो इन लोगों को देखो और उसके बाद जाकर लज्जा से मुँह छिपा. सठियाई बुध्दिवालो, तुम्हारी तो देश से बाहर निकलते ही जाति चली जायगी! सठियाई बुध्दिवालो, तुम्हारी तो देश से बाहर निकलते ही जाति जायगी चली! अपनी खोपडी में वर्षों के अन्धविश्वास का निरन्तर वृध्दिगत कूडा-कर्कट भरे बैठे, सैकडों वर्षों से केवल आहार की छुआछूत के विवाद में ही अपनी सारी शक्ति नष्ट करनेवाले, युगों के सामाजिक अत्याचार से अपनी सारी मानवता का गला घोटने वाले, भला बताओ तो सही, तुम कौन हो? अपनी खोपडी में वर्षों के अन्धविश्वास का निरन्तर वृध्दिगत - कूडा कर्कट भरे बैठे, सैकडों वर्षों से केवल आहार की छुआछूत के विवाद में ही अपनी सारी शक्ति नष्ट करनेवाले, युगों के सामाजिक अत्याचार से अपनी सारी मानवता का गला वाले घोटने, भला बताओ तो सही, तुम कौन हो? और तुम इस समय कर ही क्या रहे हो? और तुम इस समय कर ही क्या रहे हो? ...किताबें हाथ में लिए तुम केवल समुद्र के किनारे फिर रहे हो। ... किताबें हाथ में लिए तुम केवल समुद्र के किनारे फिर रहे हो. तीस रुपये की मुंशी - गीरी के लिए अथवा बहुत हुआ, तो एक वकील बनने के लिए जी - जान से तडप रहे हो -- यही तो भारतवर्ष के नवयुवकों की सबसे बडी महत्वाकांक्षा है। तीस रुपये की - मुंशी गीरी के लिए अथवा बहुत हुआ, तो एक वकील बनने के लिए जी - जान से तडप रहे हो - यही तो भारतवर्ष के नवयुवकों की सबसे बडी महत्वाकांक्षा है. तिस पर इन विद्यार्थियों के भी झुण्ड के झुण्द बच्चे पैदा हो जाते हैं, जो भूख से तडपते हुए उन्हें घेरकर ' रोटी दो, रोटी दो ' चिल्लाते रहते हैं। तिस पर इन विद्यार्थियों के भी झुण्ड के झुण्द बच्चे पैदा हो जाते हैं, जो भूख से तडपते हुए उन्हें 'घेरकर रोटी दो, रोटी' दो चिल्लाते रहते हैं. क्या समुद्र में इतना पानी भी न रहा कि तुम उसमें विश्वविद्यालय के डिप्लोमा, गाउन और पुस्तकों के समेत डूब मरो ? क्या समुद्र में इतना पानी भी न रहा कि तुम उसमें विश्वविद्यालय के डिप्लोमा, गाउन और पुस्तकों के समेत डूब मरो? आओ, मनुष्य बनो! आओ, मनुष्य बनो! उन पाखण्डी पुरोहितों को, जो सदैव उन्नत्ति के मार्ग में बाधक होते हैं, ठोकरें मारकर निकाल दो, क्योंकि उनका सुधार कभी न होगा, उन्के हृदय कभी विशाल न होंगे। उन पाखण्डी पुरोहितों को, जो सदैव उन्नत्ति के मार्ग में बाधक होते हैं, ठोकरें मारकर निकाल दो, क्योंकि उनका सुधार कभी न होगा, उन्के हृदय कभी विशाल न होंगे. उनकी उत्पत्ति तो सैकडों वर्षों के अन्धविश्वासों और अत्याचारों के फलस्वरूप हुई है। उनकी उत्पत्ति तो सैकडों वर्षों के अन्धविश्वासों और अत्याचारों के फलस्वरूप हुई है. पहले पुरोहिती पाखंड को ज़ड - मूल से निकाल फेंको। पहले पुरोहिती पाखंड को - ज़ड मूल से निकाल फेंको. आओ, मनुष्य बनो। आओ, मनुष्य बनो. कूपमंडूकता छोडो और बाहर दृष्टि डालो। कूपमंडूकता छोडो और बाहर दृष्टि डालो. देखो, अन्य देश किस तरह आगे बढ रहे हैं। देखो, अन्य देश किस तरह आगे बढ रहे हैं. क्या तुम्हे मनुष्य से प्रेम है? क्या तुम्हे मनुष्य से प्रेम है? यदि 'हाँ' तो आओ, हम लोग उच्चता और उन्नति के मार्ग में प्रयत्नशील हों। 'यदि' हाँ तो आओ, हम लोग उच्चता और उन्नति के मार्ग में हों प्रयत्नशील. पीछे मुडकर मत देखो; अत्यन्त निकट और प्रिय सम्बन्धी रोते हों, तो रोने दो, पिछे देखो ही मत। पीछे मुडकर मत, देखो अत्यन्त निकट और प्रिय सम्बन्धी हों रोते, तो रोने दो, पिछे देखो ही मत. केवल आगे बढते जाओ। केवल आगे बढते जाओ. भारतमाता कम से कम एक हज़ार युवकों का बलिदान चाहती है -- मस्तिष्क - वाले युवकों का, पशुओं का नहीं। भारतमाता कम से कम एक हज़ार युवकों का बलिदान चाहती - है मस्तिष्क - वाले का युवकों, पशुओं का नहीं. परमात्मा ने तुम्हारी इस निश्चेष्ट सभ्यता को तोडने के लिए ही अंग्रेज़ी राज्य को भारत में भेजा है... ( वि.स.१/३९८-९९) परमात्मा ने तुम्हारी इस निश्चेष्ट सभ्यता को तोडने के लिए ही अंग्रेज़ी राज्य को भारत में भेजा है ... (वि.स. 1/398-99)

न संख्या-शक्ति, न धन, न पाण्डित्य, न वाक चातुर्य, कुछ भी नहीं, बल्कि पवित्रता, शुध्द जीवन, एक शब्द में अनुभूति, आत्म-साक्षात्कार को विजय मिलेगी! न संख्या - शक्ति, न धन, न पाण्डित्य, न वाक चातुर्य, कुछ भी नहीं, बल्कि पवित्रता, शुध्द जीवन, एक शब्द में अनुभूति, आत्म - साक्षात्कार को विजय मिलेगी! प्रत्येक देश में सिंह जैसी शक्तिमान दस-बारह आत्माएँ होने दो, जिन्होने अपने बन्धन तोड डाले हैं, जिन्होने अनन्त का स्पर्श कर लिया है, जिन्का चित्र ब्रह्मनुसन्धान में लीन है, जो न धन की चिन्ता करते हैं, न बल की, न नाम की और ये व्यक्ति ही संसार को हिला डालने के लिए पर्याप्त होंगे। (वि.स.४/३३६) प्रत्येक देश में सिंह जैसी शक्तिमान - दस बारह आत्माएँ दो होने, जिन्होने अपने बन्धन तोड डाले हैं, जिन्होने अनन्त का स्पर्श कर लिया है, जिन्का चित्र ब्रह्मनुसन्धान में लीन है, जो न धन की चिन्ता करते हैं, न बल की, न नाम की और ये व्यक्ति ही संसार को हिला डालने के लिए पर्याप्त होंगे. (वि.स. 4 336 /)

यही रहस्य है। यही रहस्य है. योग प्रवर्तक पंतजलि कहते हैं, " जब मनुष्य समस्त अलौकेक दैवी शक्तियों के लोभ का त्याग करता है, तभी उसे धर्म मेघ नामक समाधि प्राप्त होती है। वह प्रमात्मा का दर्शन करता है, वह परमात्मा बन जाता है और दूसरों को तदरूप बनने में सहायता करता है। मुझे इसीका प्रचार करना है। जगत् में अनेक मतवादों का प्रचार हो चुका है। लाखों पुस्तकें हैं, परन्तु हाय! कोई भी किंचित् अंश में प्रत्य्क्ष आचरण नहीं करता। (वि.स.४/३३७) योग प्रवर्तक पंतजलि कहते हैं, "जब मनुष्य समस्त अलौकेक दैवी शक्तियों के लोभ का त्याग करता है, तभी उसे धर्म मेघ नामक समाधि प्राप्त होती है वह. प्रमात्मा का दर्शन करता है, वह परमात्मा बन जाता है और दूसरों को तदरूप बनने में करता सहायता है. मुझे इसीका प्रचार करना है. जगत् में अनेक मतवादों का प्रचार हो चुका है. लाखों पुस्तकें हैं, हाय परन्तु! कोई भी किंचित् अंश में प्रत्य्क्ष आचरण नहीं करता. (वि.स. 4 337 /)


एक महान रहस्य का मैंने पता लगा लिया है -- वह यह कि केवल धर्म की बातें करने वालों से मुझे कुछ भय नहीं है। एक महान रहस्य का मैंने पता लगा लिया - है वह यह कि केवल धर्म की बातें करने वालों से मुझे कुछ भय नहीं है. और जो सत्यद्र्ष्ट महात्मा हैं, वे कभी किसी से बैर नहीं करते। और जो सत्यद्र्ष्ट महात्मा हैं, वे कभी किसी से बैर नहीं करते. वाचालों को वाचाल होने दो! वाचालों को वाचाल होने दो! वे इससे अधिक और कुछ नहीं जानते! वे इससे अधिक और कुछ नहीं जानते! उन्हे नाम, यश, धन, स्त्री से सन्तोष प्राप्त करने दो। उन्हे नाम, यश, धन, स्त्री से सन्तोष प्राप्त करने दो. और हम धर्मोपलब्धि, ब्रह्मलाभ एवं ब्रह्म होने के लिए ही दृढव्रत होंगे। और हम धर्मोपलब्धि, ब्रह्मलाभ एवं ब्रह्म होने के लिए ही होंगे दृढव्रत. हम आमरण एवं जन्म-जन्मान्त में सत्य का ही अनुसरण करेंगें। हम आमरण एवं - जन्म जन्मान्त में सत्य का ही अनुसरण करेंगें. दूसरों के कहने पर हम तनिक भी ध्यान न दें और यदि आजन्म यत्न के बाद एक, देवल एक ही आत्मा संसार के बन्धनों को तोडकर मुक्त हो सके तो हमने अपना काम कर लिया। दूसरों के कहने पर हम तनिक भी ध्यान न दें और यदि आजन्म यत्न के बाद एक, देवल एक ही आत्मा संसार के बन्धनों को तोडकर मुक्त हो सके तो हमने अपना काम कर लिया. (वि.स. ४/३३७) (वि.स. 4 337 /)


जो सबका दास होता है, वही उन्का सच्चा स्वामी होता है। जो सबका दास होता है, वही उन्का सच्चा स्वामी होता है. जिसके प्रेम में ऊँच - नीच का विचार होता है, वह कभी नेता नहीं बन सकता। जिसके प्रेम में - ऊँच नीच का विचार है होता, वह कभी नेता नहीं बन सकता. जिसके प्रेम का कोई अन्त नहीं है, जो ऊँच - नीच सोचने के लिए कभी नहीं रुकता, उसके चरणों में सारा संसार लोट जाता है। (वि.स. ४/४०३) जिसके प्रेम का कोई अन्त नहीं है, जो ऊँच - नीच सोचने के लिए कभी नहीं रुकता, उसके चरणों में सारा संसार लोट जाता है. (वि.स. 4 403 /)
वत्स, धीरज रखो, काम तुम्हारी आशा से बहुत ज्यादा बढ जाएगा। वत्स, धीरज रखो, काम तुम्हारी आशा से बहुत ज्यादा बढ जाएगा. हर एक काम में सफलता प्राप्त करने से पहले सैंकडो कठिनाइयों का सामना करना पडता है। हर एक काम में सफलता प्राप्त करने से पहले सैंकडो कठिनाइयों का सामना करना पडता है. जो उद्यम करते रहेंगे, वे आज या कल जो उद्यम करते रहेंगे, वे आज या कल
सफलता को देखेंगे। सफलता को देखेंगे. परिश्रम करना है वत्स, कठिन परिश्रम्! परिश्रम करना है वत्स, कठिन परिश्रम्! काम कांचन के इस चक्कर में अपने आप को स्थिर रखना, और अपने आदर्शों पर जमे रहना, जब तक कि आत्मज्ञान और पूर्ण त्याग के साँचे काम कांचन के इस चक्कर में अपने आप को स्थिर रखना, और अपने आदर्शों पर जमे रहना, जब तक कि आत्मज्ञान और पूर्ण त्याग के साँचे
में शिष्य न ढल जाय निश्चय ही कठिन काम है। में शिष्य न ढल जाय निश्चय ही कठिन काम है. जो प्रतिक्षा करता है, उसे सब चीज़े मिलती हैं। जो प्रतिक्षा करता है, उसे सब चीज़े मिलती हैं. अनन्त काल तक तुम भाग्यवान बने रहो। (वि.स. ४/३८७) अनन्त काल तक तुम भाग्यवान बने रहो. (वि.स. 4 387 /)

अकेले रहो, अकेले रहो। अकेले रहो, अकेले रहो. जो अकेला रहता है, उसका किसीसे विरोध नहीं होता, वह किसीकी शान्ति भंग नहीं करता, न दूसरा कोई उसकी शान्ति भंग करता है। (वि.स. ४/३८१) जो अकेला रहता है, उसका किसीसे विरोध नहीं होता, वह किसीकी शान्ति भंग नहीं करता, न दूसरा कोई उसकी शान्ति भंग करता है. (वि.स. 4 381 /)

मेरी दृढ धारणा है कि तुममें अन्धविश्वास नहीं है। मेरी दृढ धारणा है कि तुममें अन्धविश्वास नहीं है. तुममें वह शक्ति विद्यमान है, जो संसार को हिला सकती है, धीरे - धीरे और भी अन्य लोग आयेंगे। तुममें वह शक्ति विद्यमान है, जो संसार को हिला सकती है, धीरे - धीरे और भी अन्य आयेंगे लोग. 'साहसी' शब्द और उससे अधिक 'साहसी' कर्मों की हमें 'और उससे' अधिक 'साहसी कर्मों की हमें साहसी' शब्द
आवश्यकता है। आवश्यकता है. उठो! उठो! उठो! उठो! संसार दुःख से जल रहा है। संसार दुःख से जल रहा है. क्या तुम सो सकते हो? क्या तुम सो सकते हो? हम बार - बार पुकारें, जब तक सोते हुए देवता न जाग उठें, जब तक अन्तर्यामी देव उस पुकार का उत्तर न दें। हम - बार बार पुकारें, जब तक सोते हुए देवता न जाग उठें, जब तक अन्तर्यामी देव उस पुकार का उत्तर दें न. जीवन में जीवन में
और क्या है? और क्या है? इससे महान कर्म क्या है? (वि.स. ४/४०८) इससे महान कर्म क्या है? (वि.स. 4 408 /)

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