Thursday, June 24, 2010

स्वामी विवेकानन्द जी

लेकिन दुर्भाग्यवश उस गाँव के रास्ते में ही मुझे तेज़ बुखार आ गया और फिर क़ै - दस्त होने लगी, जैसी हैज़े में होती है। लेकिन दुर्भाग्यवश उस गाँव के रास्ते में ही मुझे तेज़ बुखार आ गया और फिर - क़ै दस्त लगी होने, जैसी हैज़े में होती है. तीन - चार दिन बाद बुखार फिर हो आया -- और इस समय शरीर में इतनी कमज़ोरी है कि मेरे लिए दो क़दम चलना भी कठिन है। - तीन चार दिन बाद बुखार फिर हो आया - और इस समय शरीर में इतनी कमज़ोरी है कि मेरे लिए दो क़दम चलना भी कठिन है. मुझे यह पता नहीं कि ईश्वर की क्या इच्छा है, लेकिन इस मार्ग पर चलने के लिए मेरा शरीर बिल्कुल अक्षम है। मुझे यह पता नहीं कि ईश्वर की क्या इच्छा है, लेकिन इस मार्ग पर चलने के लिए मेरा शरीर बिल्कुल अक्षम है. फिर भी, शरीर ही तो सब कुछ नहीं है। फिर भी, शरीर ही तो सब कुछ नहीं है. ...विश्वेश्वर, जैसा चाहेंगे, चाहे जो हो, वही होगा। ( वि.स. १/३३५, २१ फरवरी, १८८९) ... विश्वेश्वर, जैसा चाहेंगे, चाहे जो हो, वही होगा. (335 1 / वि.स., 21 फरवरी, 1889)

इस समय मैं बहुत बीमार हूँ। इस समय मैं बहुत बीमार हूँ. कभी - कभी बुखार हो जाता है। कभी - कभी बुखार हो जाता है. लेकिन प्लीहा या किसी अन्य अंग में कोई गडबडी नहीं है। लेकिन प्लीहा या किसी अन्य अंग में कोई गडबडी नहीं है. मैं होमियोपैथिक चिकित्सा करा रहा हूँ। (वि.स. १/३३५, २१ मार्च, १८८९, कलकत्ता) मैं होमियोपैथिक चिकित्सा करा रहा हूँ. (335 1 / वि.स., 21 मार्च, 1889, कलकत्ता)

वाराणसी में जब तक रहा, हर समय ज्वर बना रहा, वहाँ इतना मलेरिया है। वाराणसी में जब तक रहा, हर समय ज्वर बना रहा, वहाँ इतना मलेरिया है. गाज़ीपुर में, खासकर जहाँ मैं रहता हूँ, वहाँ की जलवायु स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त लाभदायक है। गाज़ीपुर में, खासकर जहाँ मैं रहता हूँ, वहाँ की जलवायु स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त है लाभदायक.
(वि.स. १/३५२, ३० जनवरी१८९०, गाज़ीपुर) (, वि.स. 1 / 352 30 जनवरी 1890, गाज़ीपुर)

मेरी भी कमर में एक प्रकार का दर्द बना हुआ है, हाल में वह दर्द बहुत बढ गया है एवं कष्ट दे रहा है। मेरी भी कमर में एक प्रकार का दर्द बना हुआ है, हाल में वह दर्द बहुत बढ गया है एवं कष्ट दे रहा है. ...मैं कटिवात से बहुत पीडित रहा हूँ। (वि.स. १/३५६, १३ फरवरी१८९०, गाज़ीपुर) ... मैं कटिवात से बहुत पीडित रहा हूँ. (356 1 / वि.स., 13 फरवरी 1890, गाज़ीपुर)

कमर दर्द ज़रा भी अच्छा नहीं हो रहा है, बहुत कष्ट है। कमर दर्द ज़रा भी अच्छा नहीं हो रहा है, बहुत कष्ट है. ...यहाँ (गाज़ीपुर) ठहरने से मैं मलेरिया से मुक्त हो गया हूँ। ... (यहाँ गाज़ीपुर) ठहरने से मैं मलेरिया से हूँ मुक्त हो गया. केवल कर्मर की पीडा ने मुझे बेचैन कर रखा है। केवल कर्मर की पीडा ने मुझे बेचैन कर रखा है. दर्द दिन - रात बना रहता है और मुझे बहुत बेचैनी रहती है। (वि.स. १/३६४-५, ३ मार्च१८९०, गाज़ीपुर) दर्द - दिन रात बना रहता है और मुझे बहुत बेचैनी रहती है. (वि.स. 1/364-5, 3 मार्च 1890, गाज़ीपुर)

कमर का दर्द भी किसी तरह ठीक नहीं हो पाता -- बडी बला है। कमर का दर्द भी किसी तरह ठीक नहीं हो - पाता बडी बला है. धीरे - धीरे अभ्यस्त होता जा रहा हूँ। (वि.स. १/३७२, २ अप्रैल१८९०, गाज़ीपुर) धीरे - धीरे अभ्यस्त होता जा रहा हूँ. (372 1 / वि.स., 2 अप्रैल 1890, गाज़ीपुर)

मेरा स्वास्थ्य अब काफ़ी अच्छा है; और गाज़ीपुर में रहने से जो लाभ हुआ है आशा है, वह कुछ समय तक अवश्य टिकेगा। (वि.स. १/३७८, ६ जुलाई१८९०, बागबाज़ार) मेरा स्वास्थ्य अब काफ़ी अच्छा, है और गाज़ीपुर में रहने से जो लाभ हुआ है है आशा, वह कुछ समय तक अवश्य टिकेगा. (378 1 / वि.स., 6 जुलाई 1890, बागबाज़ार)

अभी से यहाँ (हैदराबाद) अत्यन्त गर्मी पड रही है, पता नहीं, राजपूताने में और भी कितनी भीषण गर्मी होगी और मैं गर्मी बिल्कुल सहन नहीं कर सकता। अभी से यहाँ (हैदराबाद) अत्यन्त गर्मी पड रही है, पता नहीं, राजपूताने में और भी कितनी भीषण गर्मी होगी और मैं गर्मी बिल्कुल सहन नहीं कर सकता. अतः इसके बाद यहाँ से मुझे बंगलोर जाना पडेगा, तत्पश्चात् उटकमण्ड जाकर मुझे गर्मी बीताना है। अतः इसके बाद यहाँ से मुझे बंगलोर जाना पडेगा, तत्पश्चात् उटकमण्ड जाकर मुझे गर्मी बीताना है. गर्मी में मानो मेरा मस्तिष्क खौल जाता है। गर्मी में मानो मेरा मस्तिष्क खौल जाता है.
(वि.स. १/३८६, २१ फ़रवरी१८९३, हैदराबाद) (, वि.स. 1 / 386 21 फ़रवरी 1893 हैदराबाद)
मैं इतना अधिक थका हुआ हूँ। मैं इतना अधिक थका हुआ हूँ. कि यदि मुझे बिश्राम न मिले तो अगले छः माह तक मैं जीवित रह सकूँगा भी या नहीं, इसमें मुझे सन्देह है।(वि.स. ६/३०३,२५ फ़रवरी १८९७,आलमबाज़ार मठ) कि यदि मुझे बिश्राम न मिले तो अगले छः माह तक मैं जीवित रह सकूँगा भी या नहीं, इसमें मुझे सन्देह है. (303 / 6 वि.स., 25 फ़रवरी 1897 आलमबाज़ार मठ)

हाय मेरा शरीर कितना दुर्बल है, तिस पर बंगाली का शरीर -- इस थोडे परिश्रम से ही प्राणघातक व्याधि ने इसे घेर लिया। हाय मेरा शरीर कितना दुर्बल है, तिस पर बंगाली का शरीर - इस थोडे परिश्रम से ही प्राणघातक व्याधि ने इसे लिया घेर. परन्तु आशा है कि उत्पत्स्यतेsस्ति मम कोठपि समानधर्मा, कालो ह्यायं निरवधिर्विपुला च पृथ्वी। परन्तु आशा है कि उत्पत्स्यते पृथ्वी s स्ति मम कोठपि समानधर्मा, कालो ह्यायं निरवधिर्विपुला च. (भवभूति) -- अर्थात् मेर समान गुणवाला कोई और है या होगा, क्योंकि काल का अन्त नहीं और पृथ्वी भी विशाल है।(६/३१४,२४ अप्रैल, दार्जिलिंग) (भवभूति) - अर्थात् मेर समान गुणवाला कोई और है या होगा, क्योंकि काल का अन्त नहीं और पृथ्वी भी विशाल है. (/ 314 6, 24 अप्रैल, दार्जिलिंग)

दुर्भाग्यवश इंग्लैण्ड में अत्यन्त परिश्रम से मैं पहले ही थका हुआ था,और दक्षिण भारत की गर्मी में इस अत्यधिक परिश्रम ने मुझे बिल्कुल गिरा दिया।(६/३१५, २८ अप्रैल, दार्जिलिंग) दुर्भाग्यवश इंग्लैण्ड में अत्यन्त परिश्रम से मैं पहले ही थका हुआ था, और दक्षिण भारत की गर्मी में इस अत्यधिक परिश्रम ने मुझे बिल्कुल गिरा दिया. (/ 315 6, 28 अप्रैल, दार्जिलिंग)

मेरे गुच्छे के गुच्छे बाल सफेद हो रहे हैं और मेरे मुख पर चारों ओर से झुर्रियाँ पड रही हैं; शरीर का मांस घटने से बीस वर्ष मेरी आयु बढी हुई मालूम पडती है। मेरे गुच्छे के गुच्छे बाल सफेद हो रहे हैं और मेरे मुख पर चारों ओर से झुर्रियाँ पड रही हैं, शरीर का मांस घटने से बीस वर्ष मेरी आयु बढी हुई मालूम पडती है. और अब मेरा शरीर तेज़ी से घटता चला जा रहा है, क्योंकि मैं केवल मांस पर ही जीवित रहने को विवश हूँ -- न रोटी, न चावल, न आलू और कॉफ़ी के साथ थोडी सी चीनी ही। (६/३१६, २८ अप्रैल, दार्जिलिंग) और अब मेरा शरीर तेज़ी से घटता चला जा रहा है, क्योंकि मैं केवल मांस पर ही जीवित रहने को विवश हूँ - रोटी न, न चावल, न आलू और कॉफ़ी के साथ थोडी सी चीनी ही. (/ 316 6, 28 अप्रैल, दार्जिलिंग)

मैं अपने बिगडे हुए स्वास्थ्य को सँभालने एक मास के लिए दार्जिलिंग गया था। मैं अपने बिगडे हुए स्वास्थ्य को सँभालने एक मास के लिए दार्जिलिंग गया था. मैं अब पहले से बहुत अच्छा हूँ। मैं अब पहले से बहुत अच्छा हूँ. दार्जिलिंग में मेरा रोग पूरी तरह से भाग गया। (६/३१७, ५ मई, १८९७,आलमबाज़ार मठ) दार्जिलिंग में मेरा रोग पूरी तरह से भाग गया. (/ 317 6, 5 मई, 1897, आलमबाज़ार मठ)

स्वास्थ्य सुधारने के लिए मुझे एक माह तक दार्जिलिंग रहना पडा। स्वास्थ्य सुधारने के लिए मुझे एक माह तक दार्जिलिंग रहना पडा. तुम्हें यह जानकर खुशी होगी कि मैं पहले की अपेक्षा बहुत कुछ स्वस्थ हूँ। तुम्हें यह जानकर खुशी होगी कि मैं पहले की अपेक्षा बहुत कुछ स्वस्थ हूँ. और, क्या तुम्हें विश्वास होगा, बिना किसी प्रकार की औषधि सेवन किये केवल इच्छा - शक्ति के प्रयोग द्वारा ही? (६/३२०,५ मई, १८९७,आलमबाज़ार मठ) और, क्या तुम्हें विश्वास होगा, बिना किसी प्रकार की औषधि सेवन किये केवल इच्छा - शक्ति के प्रयोग द्वारा ही? 6 / (320 5 मई, 1897, आलमबाज़ार मठ)

अल्मोडा में अत्यधिक गर्मी होने की वजह से वहाँ से २० मील की दूरी पर मैं एक सुन्दर बगीचे में रह रहा हूँ... अल्मोडा में अत्यधिक गर्मी होने की वजह से वहाँ से 20 मील की दूरी पर मैं एक सुन्दर बगीचे में रह रहा हूँ ... मुझे अब बुखार नहीं आता। मुझे अब बुखार नहीं आता. और भी ठन्डे स्थान में जाने की चेष्टा कर रहा हूँ। और भी ठन्डे स्थान में जाने की चेष्टा कर रहा हूँ. मैं अनुभव करता हूँ कि गर्मी तथा चलने के श्रम से 'लीवर' की क्रिया में तुरन्त गडबडी होने लगती है। मैं अनुभव करता हूँ कि गर्मी तथा चलने के से श्रम 'लीवर की क्रिया में तुरन्त गडबडी होने लगती है. यहाँ पर इतनी सूखी हवा चलती है कि दिन - रात नाक में जलन होती रहती है और जीभ भी लकडी जैसी सूखी बनी रहती है। (६/३२२, २० मई१८९७ अल्मोडा) यहाँ पर इतनी सूखी हवा चलती है कि - दिन रात नाक में जलन होती रहती है और जीभ भी लकडी जैसी सूखी बनी रहती है. (/ 322 6, 20 मई 1897 अल्मोडा)

सुबह - शाम घोडे पर सवार होकर मैंने पर्याप्त रूप से व्यायाम करना प्रारम्भ कर दिया है और उसके बाद से सचमुच मैं बहुत अच्छा हूँ। - सुबह शाम घोडे पर सवार होकर मैंने पर्याप्त रूप से व्यायाम करना प्रारम्भ कर दिया है और उसके बाद से सचमुच मैं बहुत अच्छा हूँ. व्यायाम शुरू करने के बाद पहले सप्ताह में ही मैं इतना स्वस्थ अनुभव करने लगा, जितना कि बचपन के उन दिनों को छोडकर जब मैं कुश्ती लडा करता था, मैंने कभीनहीं किया था। व्यायाम शुरू करने के बाद पहले सप्ताह में ही मैं इतना स्वस्थ अनुभव करने लगा, जितना कि बचपन के उन दिनों को छोडकर जब मैं कुश्ती लडा था करता, मैंने कभीनहीं किया था. तब मुझे सच में लगता था कि शरिरधारी होना ही एक आनन्द का विषय है। तब मुझे सच में लगता था कि शरिरधारी होना ही एक आनन्द का विषय है. तब शरीर की प्रत्येक गति में मुझे शक्ति का आभास मिलता था तथा अंग - प्रत्यंग के संचालन से सुख की अनुभूति होती थी। तब शरीर की प्रत्येक गति में मुझे शक्ति का आभास मिलता था तथा - अंग प्रत्यंग के संचालन से सुख की अनुभूति होती थी. वह अनुभव अब कुछ घट चुका है, फिर भी मैं अपने को शक्तिशाली अनुभव करता हूँ।... वह अनुभव अब कुछ घट चुका है, फिर भी मैं अपने को शक्तिशाली अनुभव करता हूँ .... एक उल्लेखनीय परिवर्तन दिखायी दे रहा है। एक उल्लेखनीय परिवर्तन दिखायी दे रहा है. बिस्तरे पर लेटने के साथ ही मुझे कभी नींद नहीं आती थी -- घंटे दो घंटे तक मुझे इधर - उधर करवट बदलनी पडती थी। बिस्तरे पर लेटने के साथ ही मुझे कभी नींद नहीं आती - थी घंटे दो घंटे तक मुझे इधर - उधर करवट बदलनी पडती थी. केवल मद्रास से दार्जिलिंग तक (दार्जिलिंग में सिर्फ़ पहले महीने तक) तकिये पर सिर रखते ही मुझे नींद आ जाती थी। केवल मद्रास से दार्जिलिंग (तक दार्जिलिंग में सिर्फ़ पहले महीने तक) तकिये पर सिर रखते ही मुझे नींद आ थी जाती. वह सुलभनिद्रा अब एकदम अन्तर्हित हो चुकी है और इधर - उधर करवट बदलने की मेरी वह पुरानी आदत तथा रात्रि में भोजन के बाद गर्मी लगने की अनुभूति पुनः वापस लौट आयी है। वह सुलभनिद्रा अब एकदम अन्तर्हित हो चुकी है और इधर - उधर करवट बदलने की मेरी वह पुरानी आदत तथा रात्रि में भोजन के बाद गर्मी लगने की अनुभूति पुनः वापस लौट आयी है. दिन में भोजन के बाद कोई खास गर्मी का अनुभव नहीं होता।... दिन में भोजन के बाद कोई खास गर्मी का अनुभव नहीं होता .... साधारणतया यहाँ पर मुझे शक्तिवर्ध्दन के साथ ही साथ प्रफुल्लता तथा विपुल स्वास्थ्य का अनुभव हो रहा है। साधारणतया यहाँ पर मुझे शक्तिवर्ध्दन के साथ ही साथ प्रफुल्लता तथा विपुल स्वास्थ्य का अनुभव हो रहा है. चिन्ता की बात केवल इतनी है कि अधिक मात्रा में दूध लेने के कारण चर्बी की वृध्दि हो रही है।... चिन्ता की बात केवल इतनी है कि अधिक मात्रा में दूध लेने के कारण चर्बी की वृध्दि हो रही है .... हाँ, एक बात और है, मैं आसानी से मलेरियाग्रस्त हो जाता हूँ... हाँ, एक बात और है, मैं आसानी से मलेरियाग्रस्त हो जाता हूँ ... खैर, इस समय तो मैं अपने को अत्यन्त बलशाली अनुभव कर रहा हूँ। खैर, हूँ इस समय तो मैं अपने को अत्यन्त बलशाली अनुभव कर रहा. डॉक्टर, आजकल जब मैं बर्फ़ से ढके हुए पर्वतशिखरों के सम्मुख बैठकर उपनिषद् के इस अंश का पाठ करता हूँ -- न तस्य रोगो न जरा न मृत्यु प्राप्त्स्य योगाग्निमयं शरीरम् (जिसने योगाग्निमय शरीर प्राप्त किया है, उसके लिए जरा-मृत्यु कुछ भी नहीं है) उस समय यदि एक बार तुम मुझे देख सकते! (६/३२४,२९मई,१८९७,अल्मोडा) डॉक्टर, आजकल जब मैं बर्फ़ से ढके हुए पर्वतशिखरों के सम्मुख बैठकर उपनिषद् के इस अंश का पाठ करता हूँ - न तस्य रोगो न जरा न मृत्यु प्राप्त्स्य योगाग्निमयं (शरीरम् जिसने योगाग्निमय शरीर प्राप्त किया है, उसके लिए जरा - है मृत्यु कुछ भी नहीं ) उस समय यदि एक बार तुम मुझे देख सकते! (/ 324 6, 29 मई, 1897, अल्मोडा)
शुध्द हवा, नियमानुसार भोजन और यथेष्ट व्यायाम करने से मेरा शरीर बलवान तथा स्वस्थ हो गया है। (६/३३०,अल्मोडा) शुध्द हवा, नियमानुसार भोजन और यथेष्ट व्यायाम करने से मेरा शरीर बलवान तथा स्वस्थ हो गया है अल्मोडा. (6/330)

मैं अब पूर्ण स्वस्थ हूँ। मैं अब पूर्ण स्वस्थ हूँ. शरीर में ताक़त भी खूब है; प्यास नहीं लगती तथा रात में पेशाब के लिए उठना भी नहीं पडता।... शरीर में ताक़त भी खूब; है प्यास नहीं लगती तथा रात में पेशाब के लिए उठना भी नहीं पडता .... कमर में कोई दर्द - वर्द नहीं है; लीवर की क्रिया भी ठीक है।... कमर में कोई - दर्द वर्द नहीं है; लीवर की क्रिया भी ठीक है .... पर्याप्त मात्रा में आम खा रहा हूँ। पर्याप्त मात्रा में आम खा रहा हूँ. घोडे की सवारी का अभ्यास भी विशेष रूप से चालू है -- लगातार बीस - तीस मील तक दौडने पर भी किसी प्रकार के दर्द अथवा थकावट का अनुभव नहीं होता। घोडे की सवारी का अभ्यास भी विशेष रूप से चालू - है लगातार - बीस तीस मील तक दौडने पर भी किसी प्रकार के दर्द अथवा थकावट का अनुभव नहीं होता. पेट बढने की आशंका से दूध लेना क़तई बन्द है। (६/३३७,२०जून,१८९७, अल्मोडा) पेट बढने की आशंका से दूध लेना क़तई बन्द है. (/ 337 6, 20 जून, 1897, अल्मोडा)

2 comments:

talib د عا ؤ ں کا طا لب said...

गम्भीरता के साथ शिशु सरलता को मिलाओ। गम्भीरता के साथ शिशु सरलता को मिलाओ. सबके साथ मेल से रहो। सबके साथ मेल से रहो. अहंकार के सब भाव छोड दो और साम्प्रदायिक विचारों को मन में न लाओ। अहंकार के सब भाव छोड दो और साम्प्रदायिक विचारों को मन में न लाओ. व्यर्थ विवाद महापाप है। (वि.स.४/३१८) व्यर्थ विवाद महापाप है. (वि.स. 4 318 /)

Unknown said...

फॉण्ट का कलर बदलो.
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जिन्दा लोगों की तलाश!
मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!


काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=

सच में इस देश को जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

हमें ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-

(सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666

E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in