Thursday, June 24, 2010

स्वामी विवेकानन्द जी

परमात्मा की कृपा पर मेरा अखण्ड विश्वास है। परमात्मा की कृपा पर मेरा अखण्ड विश्वास है. वह कभी टूटने वाला भी नहीं। वह कभी टूटने वाला भी नहीं. धर्मग्रन्थो पर मेरी अटूट श्रध्दा है। धर्मग्रन्थो पर मेरी अटूट श्रध्दा है. परन्तु प्रभु की इच्छा से मेरे गत छः सात वर्ष निरन्तर विभिन्न बिघ्न-बाधाओं से लडते हुए बीते। परन्तु प्रभु की इच्छा से मेरे गत छः सात वर्ष निरन्तर विभिन्न - बिघ्न बाधाओं से लडते हुए बीते. मुझे आदर्श शास्त्र प्रात्त हुआ है; मैंने एक आदर्श महापुरुष के दर्शन किये हैं, फिर भी किसी वस्तु का अन्त तक निर्वाह मुझसे नहीं हो पाता, यही मेरे लिए बडे कष्ट की बात है। मुझे आदर्श शास्त्र प्रात्त हुआ, है मैंने एक आदर्श महापुरुष के दर्शन किये हैं, फिर भी किसी वस्तु का अन्त तक निर्वाह मुझसे नहीं पाता हो, यही मेरे लिए बडे कष्ट की बात है. ... ... कलकत्ते में मेरी माँ और दो भाई रहते हैं। कलकत्ते में मेरी माँ और दो भाई रहते हैं. मैं सबसे बडा हूँ। मैं सबसे बडा हूँ. दूसरा भाई एफ. दूसरा भाई एफ. ए. ए. परीक्षा की तैयारी कर रहा है और तीसरा अभी छोटा है। परीक्षा की तैयारी कर रहा है और तीसरा अभी छोटा है. वे लोग पहले काफ़ी सम्पन्न थे, पर मेरे पिता की मृत्यु के बाद उनका जीवन कष्टमय हो गया है। वे लोग पहले काफ़ी सम्पन्न थे, पर मेरे पिता की मृत्यु के बाद उनका जीवन कष्टमय हो है गया. कभी-कभी तो उन्हे भूखा रहना पडता है। - कभी कभी तो उन्हे भूखा रहना पडता है. सबसे बडी बात तो यह है कि उन्हे असहाय पाकर कुछ समन्धियों ने उन्हे पैतृक घर से भी निकाल दिया है। सबसे बडी बात तो यह है कि उन्हे असहाय पाकर कुछ समन्धियों ने उन्हे पैतृक घर से भी निकाल दिया है. कुछ भाग तो हाईकोर्ट में मुक़दमा लडकर पुनः प्राप्त कर लिया गया है, परन्तु वे मुक़दमेबाज़ी के कारण धनहीन हो गये हैं। कुछ भाग तो हाईकोर्ट में मुक़दमा लडकर पुनः प्राप्त कर लिया गया है, परन्तु वे मुक़दमेबाज़ी के कारण धनहीन हो गये हैं. कलकत्ते के पास रहकर मुझे अपनी आँखो उनकी दुरवस्था देखनी पडती हैं। कलकत्ते के पास रहकर मुझे अपनी आँखो उनकी दुरवस्था देखनी पडती हैं. उस समय मेरे मन में रजगुण जाग्रत हो उठता है और मेरा अंहभाव कभी - कभी उस भावना में परिणत हो जाता है, जिसके कारण कार्यक्षेत्र में कुद पडने की प्रेरणा होती है। उस समय मेरे मन में रजगुण जाग्रत हो उठता है और मेरा अंहभाव - कभी कभी उस भावना में परिणत हो जाता है, जिसके कारण कार्यक्षेत्र में कुद पडने की प्रेरणा होती है. ऐसे क्षणों में मैं अपने मन में एक भयंकर अन्तर्द्वन्द्व अनुभव करता हूँ। ऐसे क्षणों में मैं अपने मन में एक भयंकर अन्तर्द्वन्द्व अनुभव करता हूँ. ...अब उनका मुक़दमा समाप्त हो चुका है। ... अब उनका मुक़दमा समाप्त हो चुका है. आशीर्वाद दीजिए कि कुछ दिन कलकत्ते में ठहर कर उन सब मामलों को सुलझाने के बाद मैं इस स्थान (कलकत्ता) से सदा के लिए विदा ले सकुँ। कलकत्ता आशीर्वाद दीजिए कि कुछ दिन कलकत्ते में ठहर कर उन सब मामलों को सुलझाने के बाद मैं इस स्थान () से सदा के लिए विदा ले सकुँ.
( वि.स. १/३३७, ४ जुलाई, १८८९ ) (1889 वि.स. 1 / 337, 4 जुलाई,)

3 Comments: 3 टिप्पणियाँ:

गुमनाम Anonymous said... बेनामी ने कहा ...
Great site loved it alot, will come back and visit again. महान साइट एक बहुत प्यार करता था, वापस आ जाएगा और फिर जाएँ. » »
5:44 PM 5:44  
गुमनाम Anonymous said... बेनामी ने कहा ...
I like it! मुझे यह पसंद है! Keep up the good work. ऊपर अच्छा काम करते रहो. Thanks for sharing this wonderful site with us. हमारे साथ इस अद्भुत साइट को बांटने के लिए धन्यवाद. » »
10:25 PM 22:25  
ब्लॉगर राजेंद्र माहेश्वरी said... राजेंद्र माहेश्वरी ने कहा ...
शिक्षा का नििश्चित लक्ष्य हो - आज की शिक्षा की सबसे बडी खामी यह हैं कि इसके सामने अनुसरण करने के लिये कोई निश्चित लक्ष्य नहीं हैं। शिक्षा का नििश्चित लक्ष्य - हो आज की शिक्षा की सबसे बडी खामी यह हैं कि इसके सामने अनुसरण करने के लिये कोई निश्चित लक्ष्य नहीं हैं. एक चित्रकार अथवा मूर्तिकार जानता हैं कि उसे क्या बनाना हैं तभी वह अपने कार्य में सफल हो पाता हैं । एक चित्रकार अथवा मूर्तिकार जानता हैं कि उसे क्या बनाना हैं तभी वह अपने कार्य में सफल हो पाता हैं. आज शिक्षक को यह स्पष्ट नही हैं वह किस लक्ष्य को लेकर अध्यापन कार्य कर रहा है। आज शिक्षक को यह स्पष्ट नही हैं वह किस लक्ष्य को लेकर अध्यापन कार्य कर रहा है. सभी प्रकार की शिक्षा का एक मात्र उद्धेश्य मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण करना हैं इसके लिये वेदान्त के दर्शन को ध्यान में रखते हुए मनुष्य निर्माण की शिक्षा प्रदान की जानी चाहिये।-स्वामी विवेकानन्द जी सभी प्रकार की शिक्षा का एक मात्र उद्धेश्य मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण करना हैं इसके लिये वेदान्त के दर्शन को ध्यान में रखते हुए मनुष्य निर्माण की शिक्षा प्रदान की जानी चाहिये .- स्वामी विवेकानन्द जी

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