Thursday, June 24, 2010

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स्वामी विवेकानन्द जी

लेकिन दुर्भाग्यवश उस गाँव के रास्ते में ही मुझे तेज़ बुखार आ गया और फिर क़ै - दस्त होने लगी, जैसी हैज़े में होती है। लेकिन दुर्भाग्यवश उस गाँव के रास्ते में ही मुझे तेज़ बुखार आ गया और फिर - क़ै दस्त लगी होने, जैसी हैज़े में होती है. तीन - चार दिन बाद बुखार फिर हो आया -- और इस समय शरीर में इतनी कमज़ोरी है कि मेरे लिए दो क़दम चलना भी कठिन है। - तीन चार दिन बाद बुखार फिर हो आया - और इस समय शरीर में इतनी कमज़ोरी है कि मेरे लिए दो क़दम चलना भी कठिन है. मुझे यह पता नहीं कि ईश्वर की क्या इच्छा है, लेकिन इस मार्ग पर चलने के लिए मेरा शरीर बिल्कुल अक्षम है। मुझे यह पता नहीं कि ईश्वर की क्या इच्छा है, लेकिन इस मार्ग पर चलने के लिए मेरा शरीर बिल्कुल अक्षम है. फिर भी, शरीर ही तो सब कुछ नहीं है। फिर भी, शरीर ही तो सब कुछ नहीं है. ...विश्वेश्वर, जैसा चाहेंगे, चाहे जो हो, वही होगा। ( वि.स. १/३३५, २१ फरवरी, १८८९) ... विश्वेश्वर, जैसा चाहेंगे, चाहे जो हो, वही होगा. (335 1 / वि.स., 21 फरवरी, 1889)

इस समय मैं बहुत बीमार हूँ। इस समय मैं बहुत बीमार हूँ. कभी - कभी बुखार हो जाता है। कभी - कभी बुखार हो जाता है. लेकिन प्लीहा या किसी अन्य अंग में कोई गडबडी नहीं है। लेकिन प्लीहा या किसी अन्य अंग में कोई गडबडी नहीं है. मैं होमियोपैथिक चिकित्सा करा रहा हूँ। (वि.स. १/३३५, २१ मार्च, १८८९, कलकत्ता) मैं होमियोपैथिक चिकित्सा करा रहा हूँ. (335 1 / वि.स., 21 मार्च, 1889, कलकत्ता)

वाराणसी में जब तक रहा, हर समय ज्वर बना रहा, वहाँ इतना मलेरिया है। वाराणसी में जब तक रहा, हर समय ज्वर बना रहा, वहाँ इतना मलेरिया है. गाज़ीपुर में, खासकर जहाँ मैं रहता हूँ, वहाँ की जलवायु स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त लाभदायक है। गाज़ीपुर में, खासकर जहाँ मैं रहता हूँ, वहाँ की जलवायु स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त है लाभदायक.
(वि.स. १/३५२, ३० जनवरी१८९०, गाज़ीपुर) (, वि.स. 1 / 352 30 जनवरी 1890, गाज़ीपुर)

मेरी भी कमर में एक प्रकार का दर्द बना हुआ है, हाल में वह दर्द बहुत बढ गया है एवं कष्ट दे रहा है। मेरी भी कमर में एक प्रकार का दर्द बना हुआ है, हाल में वह दर्द बहुत बढ गया है एवं कष्ट दे रहा है. ...मैं कटिवात से बहुत पीडित रहा हूँ। (वि.स. १/३५६, १३ फरवरी१८९०, गाज़ीपुर) ... मैं कटिवात से बहुत पीडित रहा हूँ. (356 1 / वि.स., 13 फरवरी 1890, गाज़ीपुर)

कमर दर्द ज़रा भी अच्छा नहीं हो रहा है, बहुत कष्ट है। कमर दर्द ज़रा भी अच्छा नहीं हो रहा है, बहुत कष्ट है. ...यहाँ (गाज़ीपुर) ठहरने से मैं मलेरिया से मुक्त हो गया हूँ। ... (यहाँ गाज़ीपुर) ठहरने से मैं मलेरिया से हूँ मुक्त हो गया. केवल कर्मर की पीडा ने मुझे बेचैन कर रखा है। केवल कर्मर की पीडा ने मुझे बेचैन कर रखा है. दर्द दिन - रात बना रहता है और मुझे बहुत बेचैनी रहती है। (वि.स. १/३६४-५, ३ मार्च१८९०, गाज़ीपुर) दर्द - दिन रात बना रहता है और मुझे बहुत बेचैनी रहती है. (वि.स. 1/364-5, 3 मार्च 1890, गाज़ीपुर)

कमर का दर्द भी किसी तरह ठीक नहीं हो पाता -- बडी बला है। कमर का दर्द भी किसी तरह ठीक नहीं हो - पाता बडी बला है. धीरे - धीरे अभ्यस्त होता जा रहा हूँ। (वि.स. १/३७२, २ अप्रैल१८९०, गाज़ीपुर) धीरे - धीरे अभ्यस्त होता जा रहा हूँ. (372 1 / वि.स., 2 अप्रैल 1890, गाज़ीपुर)

मेरा स्वास्थ्य अब काफ़ी अच्छा है; और गाज़ीपुर में रहने से जो लाभ हुआ है आशा है, वह कुछ समय तक अवश्य टिकेगा। (वि.स. १/३७८, ६ जुलाई१८९०, बागबाज़ार) मेरा स्वास्थ्य अब काफ़ी अच्छा, है और गाज़ीपुर में रहने से जो लाभ हुआ है है आशा, वह कुछ समय तक अवश्य टिकेगा. (378 1 / वि.स., 6 जुलाई 1890, बागबाज़ार)

अभी से यहाँ (हैदराबाद) अत्यन्त गर्मी पड रही है, पता नहीं, राजपूताने में और भी कितनी भीषण गर्मी होगी और मैं गर्मी बिल्कुल सहन नहीं कर सकता। अभी से यहाँ (हैदराबाद) अत्यन्त गर्मी पड रही है, पता नहीं, राजपूताने में और भी कितनी भीषण गर्मी होगी और मैं गर्मी बिल्कुल सहन नहीं कर सकता. अतः इसके बाद यहाँ से मुझे बंगलोर जाना पडेगा, तत्पश्चात् उटकमण्ड जाकर मुझे गर्मी बीताना है। अतः इसके बाद यहाँ से मुझे बंगलोर जाना पडेगा, तत्पश्चात् उटकमण्ड जाकर मुझे गर्मी बीताना है. गर्मी में मानो मेरा मस्तिष्क खौल जाता है। गर्मी में मानो मेरा मस्तिष्क खौल जाता है.
(वि.स. १/३८६, २१ फ़रवरी१८९३, हैदराबाद) (, वि.स. 1 / 386 21 फ़रवरी 1893 हैदराबाद)
मैं इतना अधिक थका हुआ हूँ। मैं इतना अधिक थका हुआ हूँ. कि यदि मुझे बिश्राम न मिले तो अगले छः माह तक मैं जीवित रह सकूँगा भी या नहीं, इसमें मुझे सन्देह है।(वि.स. ६/३०३,२५ फ़रवरी १८९७,आलमबाज़ार मठ) कि यदि मुझे बिश्राम न मिले तो अगले छः माह तक मैं जीवित रह सकूँगा भी या नहीं, इसमें मुझे सन्देह है. (303 / 6 वि.स., 25 फ़रवरी 1897 आलमबाज़ार मठ)

हाय मेरा शरीर कितना दुर्बल है, तिस पर बंगाली का शरीर -- इस थोडे परिश्रम से ही प्राणघातक व्याधि ने इसे घेर लिया। हाय मेरा शरीर कितना दुर्बल है, तिस पर बंगाली का शरीर - इस थोडे परिश्रम से ही प्राणघातक व्याधि ने इसे लिया घेर. परन्तु आशा है कि उत्पत्स्यतेsस्ति मम कोठपि समानधर्मा, कालो ह्यायं निरवधिर्विपुला च पृथ्वी। परन्तु आशा है कि उत्पत्स्यते पृथ्वी s स्ति मम कोठपि समानधर्मा, कालो ह्यायं निरवधिर्विपुला च. (भवभूति) -- अर्थात् मेर समान गुणवाला कोई और है या होगा, क्योंकि काल का अन्त नहीं और पृथ्वी भी विशाल है।(६/३१४,२४ अप्रैल, दार्जिलिंग) (भवभूति) - अर्थात् मेर समान गुणवाला कोई और है या होगा, क्योंकि काल का अन्त नहीं और पृथ्वी भी विशाल है. (/ 314 6, 24 अप्रैल, दार्जिलिंग)

दुर्भाग्यवश इंग्लैण्ड में अत्यन्त परिश्रम से मैं पहले ही थका हुआ था,और दक्षिण भारत की गर्मी में इस अत्यधिक परिश्रम ने मुझे बिल्कुल गिरा दिया।(६/३१५, २८ अप्रैल, दार्जिलिंग) दुर्भाग्यवश इंग्लैण्ड में अत्यन्त परिश्रम से मैं पहले ही थका हुआ था, और दक्षिण भारत की गर्मी में इस अत्यधिक परिश्रम ने मुझे बिल्कुल गिरा दिया. (/ 315 6, 28 अप्रैल, दार्जिलिंग)

मेरे गुच्छे के गुच्छे बाल सफेद हो रहे हैं और मेरे मुख पर चारों ओर से झुर्रियाँ पड रही हैं; शरीर का मांस घटने से बीस वर्ष मेरी आयु बढी हुई मालूम पडती है। मेरे गुच्छे के गुच्छे बाल सफेद हो रहे हैं और मेरे मुख पर चारों ओर से झुर्रियाँ पड रही हैं, शरीर का मांस घटने से बीस वर्ष मेरी आयु बढी हुई मालूम पडती है. और अब मेरा शरीर तेज़ी से घटता चला जा रहा है, क्योंकि मैं केवल मांस पर ही जीवित रहने को विवश हूँ -- न रोटी, न चावल, न आलू और कॉफ़ी के साथ थोडी सी चीनी ही। (६/३१६, २८ अप्रैल, दार्जिलिंग) और अब मेरा शरीर तेज़ी से घटता चला जा रहा है, क्योंकि मैं केवल मांस पर ही जीवित रहने को विवश हूँ - रोटी न, न चावल, न आलू और कॉफ़ी के साथ थोडी सी चीनी ही. (/ 316 6, 28 अप्रैल, दार्जिलिंग)

मैं अपने बिगडे हुए स्वास्थ्य को सँभालने एक मास के लिए दार्जिलिंग गया था। मैं अपने बिगडे हुए स्वास्थ्य को सँभालने एक मास के लिए दार्जिलिंग गया था. मैं अब पहले से बहुत अच्छा हूँ। मैं अब पहले से बहुत अच्छा हूँ. दार्जिलिंग में मेरा रोग पूरी तरह से भाग गया। (६/३१७, ५ मई, १८९७,आलमबाज़ार मठ) दार्जिलिंग में मेरा रोग पूरी तरह से भाग गया. (/ 317 6, 5 मई, 1897, आलमबाज़ार मठ)

स्वास्थ्य सुधारने के लिए मुझे एक माह तक दार्जिलिंग रहना पडा। स्वास्थ्य सुधारने के लिए मुझे एक माह तक दार्जिलिंग रहना पडा. तुम्हें यह जानकर खुशी होगी कि मैं पहले की अपेक्षा बहुत कुछ स्वस्थ हूँ। तुम्हें यह जानकर खुशी होगी कि मैं पहले की अपेक्षा बहुत कुछ स्वस्थ हूँ. और, क्या तुम्हें विश्वास होगा, बिना किसी प्रकार की औषधि सेवन किये केवल इच्छा - शक्ति के प्रयोग द्वारा ही? (६/३२०,५ मई, १८९७,आलमबाज़ार मठ) और, क्या तुम्हें विश्वास होगा, बिना किसी प्रकार की औषधि सेवन किये केवल इच्छा - शक्ति के प्रयोग द्वारा ही? 6 / (320 5 मई, 1897, आलमबाज़ार मठ)

अल्मोडा में अत्यधिक गर्मी होने की वजह से वहाँ से २० मील की दूरी पर मैं एक सुन्दर बगीचे में रह रहा हूँ... अल्मोडा में अत्यधिक गर्मी होने की वजह से वहाँ से 20 मील की दूरी पर मैं एक सुन्दर बगीचे में रह रहा हूँ ... मुझे अब बुखार नहीं आता। मुझे अब बुखार नहीं आता. और भी ठन्डे स्थान में जाने की चेष्टा कर रहा हूँ। और भी ठन्डे स्थान में जाने की चेष्टा कर रहा हूँ. मैं अनुभव करता हूँ कि गर्मी तथा चलने के श्रम से 'लीवर' की क्रिया में तुरन्त गडबडी होने लगती है। मैं अनुभव करता हूँ कि गर्मी तथा चलने के से श्रम 'लीवर की क्रिया में तुरन्त गडबडी होने लगती है. यहाँ पर इतनी सूखी हवा चलती है कि दिन - रात नाक में जलन होती रहती है और जीभ भी लकडी जैसी सूखी बनी रहती है। (६/३२२, २० मई१८९७ अल्मोडा) यहाँ पर इतनी सूखी हवा चलती है कि - दिन रात नाक में जलन होती रहती है और जीभ भी लकडी जैसी सूखी बनी रहती है. (/ 322 6, 20 मई 1897 अल्मोडा)

सुबह - शाम घोडे पर सवार होकर मैंने पर्याप्त रूप से व्यायाम करना प्रारम्भ कर दिया है और उसके बाद से सचमुच मैं बहुत अच्छा हूँ। - सुबह शाम घोडे पर सवार होकर मैंने पर्याप्त रूप से व्यायाम करना प्रारम्भ कर दिया है और उसके बाद से सचमुच मैं बहुत अच्छा हूँ. व्यायाम शुरू करने के बाद पहले सप्ताह में ही मैं इतना स्वस्थ अनुभव करने लगा, जितना कि बचपन के उन दिनों को छोडकर जब मैं कुश्ती लडा करता था, मैंने कभीनहीं किया था। व्यायाम शुरू करने के बाद पहले सप्ताह में ही मैं इतना स्वस्थ अनुभव करने लगा, जितना कि बचपन के उन दिनों को छोडकर जब मैं कुश्ती लडा था करता, मैंने कभीनहीं किया था. तब मुझे सच में लगता था कि शरिरधारी होना ही एक आनन्द का विषय है। तब मुझे सच में लगता था कि शरिरधारी होना ही एक आनन्द का विषय है. तब शरीर की प्रत्येक गति में मुझे शक्ति का आभास मिलता था तथा अंग - प्रत्यंग के संचालन से सुख की अनुभूति होती थी। तब शरीर की प्रत्येक गति में मुझे शक्ति का आभास मिलता था तथा - अंग प्रत्यंग के संचालन से सुख की अनुभूति होती थी. वह अनुभव अब कुछ घट चुका है, फिर भी मैं अपने को शक्तिशाली अनुभव करता हूँ।... वह अनुभव अब कुछ घट चुका है, फिर भी मैं अपने को शक्तिशाली अनुभव करता हूँ .... एक उल्लेखनीय परिवर्तन दिखायी दे रहा है। एक उल्लेखनीय परिवर्तन दिखायी दे रहा है. बिस्तरे पर लेटने के साथ ही मुझे कभी नींद नहीं आती थी -- घंटे दो घंटे तक मुझे इधर - उधर करवट बदलनी पडती थी। बिस्तरे पर लेटने के साथ ही मुझे कभी नींद नहीं आती - थी घंटे दो घंटे तक मुझे इधर - उधर करवट बदलनी पडती थी. केवल मद्रास से दार्जिलिंग तक (दार्जिलिंग में सिर्फ़ पहले महीने तक) तकिये पर सिर रखते ही मुझे नींद आ जाती थी। केवल मद्रास से दार्जिलिंग (तक दार्जिलिंग में सिर्फ़ पहले महीने तक) तकिये पर सिर रखते ही मुझे नींद आ थी जाती. वह सुलभनिद्रा अब एकदम अन्तर्हित हो चुकी है और इधर - उधर करवट बदलने की मेरी वह पुरानी आदत तथा रात्रि में भोजन के बाद गर्मी लगने की अनुभूति पुनः वापस लौट आयी है। वह सुलभनिद्रा अब एकदम अन्तर्हित हो चुकी है और इधर - उधर करवट बदलने की मेरी वह पुरानी आदत तथा रात्रि में भोजन के बाद गर्मी लगने की अनुभूति पुनः वापस लौट आयी है. दिन में भोजन के बाद कोई खास गर्मी का अनुभव नहीं होता।... दिन में भोजन के बाद कोई खास गर्मी का अनुभव नहीं होता .... साधारणतया यहाँ पर मुझे शक्तिवर्ध्दन के साथ ही साथ प्रफुल्लता तथा विपुल स्वास्थ्य का अनुभव हो रहा है। साधारणतया यहाँ पर मुझे शक्तिवर्ध्दन के साथ ही साथ प्रफुल्लता तथा विपुल स्वास्थ्य का अनुभव हो रहा है. चिन्ता की बात केवल इतनी है कि अधिक मात्रा में दूध लेने के कारण चर्बी की वृध्दि हो रही है।... चिन्ता की बात केवल इतनी है कि अधिक मात्रा में दूध लेने के कारण चर्बी की वृध्दि हो रही है .... हाँ, एक बात और है, मैं आसानी से मलेरियाग्रस्त हो जाता हूँ... हाँ, एक बात और है, मैं आसानी से मलेरियाग्रस्त हो जाता हूँ ... खैर, इस समय तो मैं अपने को अत्यन्त बलशाली अनुभव कर रहा हूँ। खैर, हूँ इस समय तो मैं अपने को अत्यन्त बलशाली अनुभव कर रहा. डॉक्टर, आजकल जब मैं बर्फ़ से ढके हुए पर्वतशिखरों के सम्मुख बैठकर उपनिषद् के इस अंश का पाठ करता हूँ -- न तस्य रोगो न जरा न मृत्यु प्राप्त्स्य योगाग्निमयं शरीरम् (जिसने योगाग्निमय शरीर प्राप्त किया है, उसके लिए जरा-मृत्यु कुछ भी नहीं है) उस समय यदि एक बार तुम मुझे देख सकते! (६/३२४,२९मई,१८९७,अल्मोडा) डॉक्टर, आजकल जब मैं बर्फ़ से ढके हुए पर्वतशिखरों के सम्मुख बैठकर उपनिषद् के इस अंश का पाठ करता हूँ - न तस्य रोगो न जरा न मृत्यु प्राप्त्स्य योगाग्निमयं (शरीरम् जिसने योगाग्निमय शरीर प्राप्त किया है, उसके लिए जरा - है मृत्यु कुछ भी नहीं ) उस समय यदि एक बार तुम मुझे देख सकते! (/ 324 6, 29 मई, 1897, अल्मोडा)
शुध्द हवा, नियमानुसार भोजन और यथेष्ट व्यायाम करने से मेरा शरीर बलवान तथा स्वस्थ हो गया है। (६/३३०,अल्मोडा) शुध्द हवा, नियमानुसार भोजन और यथेष्ट व्यायाम करने से मेरा शरीर बलवान तथा स्वस्थ हो गया है अल्मोडा. (6/330)

मैं अब पूर्ण स्वस्थ हूँ। मैं अब पूर्ण स्वस्थ हूँ. शरीर में ताक़त भी खूब है; प्यास नहीं लगती तथा रात में पेशाब के लिए उठना भी नहीं पडता।... शरीर में ताक़त भी खूब; है प्यास नहीं लगती तथा रात में पेशाब के लिए उठना भी नहीं पडता .... कमर में कोई दर्द - वर्द नहीं है; लीवर की क्रिया भी ठीक है।... कमर में कोई - दर्द वर्द नहीं है; लीवर की क्रिया भी ठीक है .... पर्याप्त मात्रा में आम खा रहा हूँ। पर्याप्त मात्रा में आम खा रहा हूँ. घोडे की सवारी का अभ्यास भी विशेष रूप से चालू है -- लगातार बीस - तीस मील तक दौडने पर भी किसी प्रकार के दर्द अथवा थकावट का अनुभव नहीं होता। घोडे की सवारी का अभ्यास भी विशेष रूप से चालू - है लगातार - बीस तीस मील तक दौडने पर भी किसी प्रकार के दर्द अथवा थकावट का अनुभव नहीं होता. पेट बढने की आशंका से दूध लेना क़तई बन्द है। (६/३३७,२०जून,१८९७, अल्मोडा) पेट बढने की आशंका से दूध लेना क़तई बन्द है. (/ 337 6, 20 जून, 1897, अल्मोडा)

स्वामी विवेकानन्द जी

परमात्मा की कृपा पर मेरा अखण्ड विश्वास है। परमात्मा की कृपा पर मेरा अखण्ड विश्वास है. वह कभी टूटने वाला भी नहीं। वह कभी टूटने वाला भी नहीं. धर्मग्रन्थो पर मेरी अटूट श्रध्दा है। धर्मग्रन्थो पर मेरी अटूट श्रध्दा है. परन्तु प्रभु की इच्छा से मेरे गत छः सात वर्ष निरन्तर विभिन्न बिघ्न-बाधाओं से लडते हुए बीते। परन्तु प्रभु की इच्छा से मेरे गत छः सात वर्ष निरन्तर विभिन्न - बिघ्न बाधाओं से लडते हुए बीते. मुझे आदर्श शास्त्र प्रात्त हुआ है; मैंने एक आदर्श महापुरुष के दर्शन किये हैं, फिर भी किसी वस्तु का अन्त तक निर्वाह मुझसे नहीं हो पाता, यही मेरे लिए बडे कष्ट की बात है। मुझे आदर्श शास्त्र प्रात्त हुआ, है मैंने एक आदर्श महापुरुष के दर्शन किये हैं, फिर भी किसी वस्तु का अन्त तक निर्वाह मुझसे नहीं पाता हो, यही मेरे लिए बडे कष्ट की बात है. ... ... कलकत्ते में मेरी माँ और दो भाई रहते हैं। कलकत्ते में मेरी माँ और दो भाई रहते हैं. मैं सबसे बडा हूँ। मैं सबसे बडा हूँ. दूसरा भाई एफ. दूसरा भाई एफ. ए. ए. परीक्षा की तैयारी कर रहा है और तीसरा अभी छोटा है। परीक्षा की तैयारी कर रहा है और तीसरा अभी छोटा है. वे लोग पहले काफ़ी सम्पन्न थे, पर मेरे पिता की मृत्यु के बाद उनका जीवन कष्टमय हो गया है। वे लोग पहले काफ़ी सम्पन्न थे, पर मेरे पिता की मृत्यु के बाद उनका जीवन कष्टमय हो है गया. कभी-कभी तो उन्हे भूखा रहना पडता है। - कभी कभी तो उन्हे भूखा रहना पडता है. सबसे बडी बात तो यह है कि उन्हे असहाय पाकर कुछ समन्धियों ने उन्हे पैतृक घर से भी निकाल दिया है। सबसे बडी बात तो यह है कि उन्हे असहाय पाकर कुछ समन्धियों ने उन्हे पैतृक घर से भी निकाल दिया है. कुछ भाग तो हाईकोर्ट में मुक़दमा लडकर पुनः प्राप्त कर लिया गया है, परन्तु वे मुक़दमेबाज़ी के कारण धनहीन हो गये हैं। कुछ भाग तो हाईकोर्ट में मुक़दमा लडकर पुनः प्राप्त कर लिया गया है, परन्तु वे मुक़दमेबाज़ी के कारण धनहीन हो गये हैं. कलकत्ते के पास रहकर मुझे अपनी आँखो उनकी दुरवस्था देखनी पडती हैं। कलकत्ते के पास रहकर मुझे अपनी आँखो उनकी दुरवस्था देखनी पडती हैं. उस समय मेरे मन में रजगुण जाग्रत हो उठता है और मेरा अंहभाव कभी - कभी उस भावना में परिणत हो जाता है, जिसके कारण कार्यक्षेत्र में कुद पडने की प्रेरणा होती है। उस समय मेरे मन में रजगुण जाग्रत हो उठता है और मेरा अंहभाव - कभी कभी उस भावना में परिणत हो जाता है, जिसके कारण कार्यक्षेत्र में कुद पडने की प्रेरणा होती है. ऐसे क्षणों में मैं अपने मन में एक भयंकर अन्तर्द्वन्द्व अनुभव करता हूँ। ऐसे क्षणों में मैं अपने मन में एक भयंकर अन्तर्द्वन्द्व अनुभव करता हूँ. ...अब उनका मुक़दमा समाप्त हो चुका है। ... अब उनका मुक़दमा समाप्त हो चुका है. आशीर्वाद दीजिए कि कुछ दिन कलकत्ते में ठहर कर उन सब मामलों को सुलझाने के बाद मैं इस स्थान (कलकत्ता) से सदा के लिए विदा ले सकुँ। कलकत्ता आशीर्वाद दीजिए कि कुछ दिन कलकत्ते में ठहर कर उन सब मामलों को सुलझाने के बाद मैं इस स्थान () से सदा के लिए विदा ले सकुँ.
( वि.स. १/३३७, ४ जुलाई, १८८९ ) (1889 वि.स. 1 / 337, 4 जुलाई,)

3 Comments: 3 टिप्पणियाँ:

गुमनाम Anonymous said... बेनामी ने कहा ...
Great site loved it alot, will come back and visit again. महान साइट एक बहुत प्यार करता था, वापस आ जाएगा और फिर जाएँ. » »
5:44 PM 5:44  
गुमनाम Anonymous said... बेनामी ने कहा ...
I like it! मुझे यह पसंद है! Keep up the good work. ऊपर अच्छा काम करते रहो. Thanks for sharing this wonderful site with us. हमारे साथ इस अद्भुत साइट को बांटने के लिए धन्यवाद. » »
10:25 PM 22:25  
ब्लॉगर राजेंद्र माहेश्वरी said... राजेंद्र माहेश्वरी ने कहा ...
शिक्षा का नििश्चित लक्ष्य हो - आज की शिक्षा की सबसे बडी खामी यह हैं कि इसके सामने अनुसरण करने के लिये कोई निश्चित लक्ष्य नहीं हैं। शिक्षा का नििश्चित लक्ष्य - हो आज की शिक्षा की सबसे बडी खामी यह हैं कि इसके सामने अनुसरण करने के लिये कोई निश्चित लक्ष्य नहीं हैं. एक चित्रकार अथवा मूर्तिकार जानता हैं कि उसे क्या बनाना हैं तभी वह अपने कार्य में सफल हो पाता हैं । एक चित्रकार अथवा मूर्तिकार जानता हैं कि उसे क्या बनाना हैं तभी वह अपने कार्य में सफल हो पाता हैं. आज शिक्षक को यह स्पष्ट नही हैं वह किस लक्ष्य को लेकर अध्यापन कार्य कर रहा है। आज शिक्षक को यह स्पष्ट नही हैं वह किस लक्ष्य को लेकर अध्यापन कार्य कर रहा है. सभी प्रकार की शिक्षा का एक मात्र उद्धेश्य मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण करना हैं इसके लिये वेदान्त के दर्शन को ध्यान में रखते हुए मनुष्य निर्माण की शिक्षा प्रदान की जानी चाहिये।-स्वामी विवेकानन्द जी सभी प्रकार की शिक्षा का एक मात्र उद्धेश्य मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण करना हैं इसके लिये वेदान्त के दर्शन को ध्यान में रखते हुए मनुष्य निर्माण की शिक्षा प्रदान की जानी चाहिये .- स्वामी विवेकानन्द जी

(स्वामी विवेकानन्द)

मेरा आदर्श अवश्य ही थोडे से शब्दों में कहा जा सकता है - मनुष्य जाति को उसके दिव्य स्वरूप का उपदेश देना, तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसे अभिव्यक्त करने का उपाय बताना। (वि.स. ४/४०७) मेरा आदर्श अवश्य ही थोडे से शब्दों में कहा जा सकता - है मनुष्य जाति को उसके दिव्य स्वरूप का उपदेश देना, तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसे अभिव्यक्त करने का उपाय बताना. (वि.स. 4 407 /)

जब कभी मैं किसी व्यक्ति को उस उपदेशवाणी (श्री रामकृष्ण के वाणी) के बीच पूर्ण रूप से निमग्न पाता हूँ, जो भविष्य में संसार में शान्ति की वर्षा करने वाली है, तो मेरा हृदय आनन्द से उछलने लगता है। जब कभी मैं किसी व्यक्ति को उस (उपदेशवाणी श्री रामकृष्ण के वाणी) के बीच पूर्ण रूप से निमग्न पाता हूँ, जो भविष्य में संसार में शान्ति की वर्षा करने वाली है, तो मेरा हृदय आनन्द से उछलने लगता है. ऐसे समय मैं पागल नहीं हो जाता हूँ, यही आश्चर्य की बात है। ऐसे समय मैं पागल नहीं हो जाता हूँ, यही आश्चर्य की बात है.
(वि.स. १/३३४, ६ फरवरी, १८८९) (1889 वि.स. 1 / 334, 6 फरवरी)

'बसन्त की तरह लोग का हित करते हुए' - यहि मेरा धर्म है। 'बसन्त की तरह लोग का हित हुए करते' - यहि मेरा धर्म है. "मुझे मुक्ति और भक्ति की चाह नहीं। लाखों नरकों में जाना मुझे स्वीकार है, बसन्तवल्लोकहितं चरन्तः - यही मेरा धर्म है।" (वि.स.४/३२८) "मुझे मुक्ति और भक्ति की चाह नहीं. लाखों नरकों में जाना मुझे स्वीकार है, बसन्तवल्लोकहितं चरन्तः - यही मेरा धर्म है". (वि.स. 4 328 /)

हर काम को तीन अवस्थाओं में से गुज़रना होता है -- उपहास, विरोध और स्वीकृति। हर काम को तीन अवस्थाओं में से गुज़रना होता - है उपहास, विरोध और स्वीकृति. जो मनुष्य अपने समय से आगे विचार करता है, लोग उसे निश्चय ही ग़लत समझते है। जो मनुष्य अपने समय से आगे विचार करता है, लोग उसे निश्चय ही ग़लत समझते है. इसलिए विरोध और अत्याचार हम सहर्ष स्वीकार करते हैं; परन्तु मुझे दृढ और पवित्र होना चाहिए और भगवान् में अपरिमित विश्वास रखना चाहिए, तब ये सब लुप्त हो जायेंगे। (वि.स.४/३३०) इसलिए विरोध और अत्याचार हम सहर्ष स्वीकार करते; हैं परन्तु मुझे दृढ और पवित्र होना चाहिए और भगवान् में अपरिमित विश्वास चाहिए रखना, तब ये सब लुप्त हो जायेंगे. (वि.स. 4 330 /)

यदि कोई भंगी हमारे पास भंगी के रूप में आता है, तो छुतही बिमारी की तरह हम उसके स्पर्श से दूर भागते हैं। यदि कोई भंगी हमारे पास भंगी के रूप में आता है, तो छुतही बिमारी की तरह हम उसके स्पर्श से दूर भागते हैं. परन्तु जब उसके सीर पर एक कटोरा पानी डालकर कोई पादरी प्रार्थना के रूप में कुछ गुनगुना देता है और जब उसे पहनने को एक कोट मिल जाता है-- वह कितना ही फटा-पुराना क्यों न हो-- तब चाहे वह किसी कट्टर से कट्टर हिन्दू के कमरे के भीतर पहुँच जाय, उसके लिए कहीं रोक-टोक नहीं, ऐसा कोई नहीं, जो उससे सप्रेम हाथ मिलाकर बैठने के लिए उसे कुर्सी न दे! परन्तु जब उसके सीर पर एक कटोरा पानी डालकर कोई पादरी प्रार्थना के रूप में कुछ गुनगुना देता है और जब उसे पहनने को एक कोट मिल जाता - है वह कितना ही फटा - पुराना क्यों न हो - तब चाहे वह किसी कट्टर से कट्टर हिन्दू के कमरे के भीतर पहुँच जाय, उसके लिए कहीं रोक - टोक नहीं, ऐसा कोई नहीं, जो उससे सप्रेम हाथ मिलाकर बैठने के लिए उसे कुर्सी दे न! इससे अधिक विड्म्बना की बात क्या हो सकता है? इससे अधिक विड्म्बना की बात क्या हो सकता है? आइए, देखिए तो सही, दक्षिण भारत में पादरी लोग क्या गज़ब कर रहें हैं। आइए, देखिए तो सही, दक्षिण भारत में पादरी लोग क्या गज़ब कर रहें हैं. ये लोग नीच जाति के लोगों को लाखों की संख्या मे ईसाई बना रहे हैं। ये लोग नीच जाति के लोगों को लाखों की संख्या मे ईसाई बना रहे हैं. ...वहाँ लगभग चौथाई जनसंख्या ईसाई हो गयी है! ... वहाँ लगभग चौथाई जनसंख्या ईसाई हो गयी है! मैं उन बेचारों को क्यों दोष दूँ? मैं उन बेचारों को क्यों दोष दूँ? हें भगवान, कब एक मनुष्य दूसरे से भाईचारे का बर्ताव करना सीखेगा। (वि.स.१/३८५) हें भगवान, कब एक मनुष्य दूसरे से भाईचारे का बर्ताव करना सीखेगा. (385 1 / वि.स.)

प्रायः देखने में आता है कि अच्छे से अच्छे लोगों पर कष्ट और कठिनाइयाँ आ पडती हैं। प्रायः देखने में आता है कि अच्छे से अच्छे लोगों पर कष्ट और कठिनाइयाँ आ पडती हैं. इसका समाधान न भी हो सके, फिर भी मुझे जीवन में ऐसा अनुभव हुआ है कि जगत में कोई ऐसी वस्तु नहीं, जो मूल रूप में भली न हो। इसका समाधान न भी हो सके, फिर भी मुझे जीवन में ऐसा अनुभव हुआ है कि जगत में कोई ऐसी वस्तु नहीं, जो मूल रूप में भली न हो. ऊपरी लहरें चाहे जैसी हों, परन्तु वस्तु मात्र के अन्तरकाल में प्रेम एवं कल्याण का अनन्त भण्डार है। ऊपरी लहरें चाहे जैसी हों, परन्तु वस्तु मात्र के अन्तरकाल में प्रेम एवं कल्याण का अनन्त है भण्डार. जब तक हम उस अन्तराल तक नहीं पहुँचते, तभी तक हमें कष्ट मिलता है। जब तक हम उस अन्तराल तक नहीं पहुँचते, तभी तक हमें कष्ट मिलता है. एक बार उस शान्ति-मण्डल में प्रवेश करने पर फिर चाहे आँधी और तूफान के जितने तुमुल झकोरे आयें, वह मकान, जो सदियों की पुरानि चट्टान पर बना है, हिल नहीं सकता। (वि.स.१/३८९) एक बार उस - शान्ति मण्डल में प्रवेश करने पर फिर चाहे आँधी और तूफान के जितने तुमुल आयें झकोरे, वह मकान, जो सदियों की पुरानि चट्टान पर बना है, हिल नहीं सकता. (389 1 / वि.स.)

यही दुनिया है! यही दुनिया है! यदि तुम किसी का उपकार करो, तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे, किन्तु ज्यों ही तुम उस कार्य को वन्द कर दो, वे तुरन्त (ईश्वर न करे) तुम्हे बदमाश प्रमाणित करने में नहीं हिचकिचायेंगे। यदि तुम किसी का उपकार करो, तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे, किन्तु ज्यों ही तुम उस कार्य को वन्द कर दो, वे तुरन्त (ईश्वर न करे) तुम्हे बदमाश प्रमाणित करने में नहीं हिचकिचायेंगे. मेरे जैसे भावुक व्यक्ति अपने सगे - स्नेहियों द्वरा सदा ठगे जाते हैं। मेरे जैसे भावुक व्यक्ति अपने - सगे स्नेहियों द्वरा सदा ठगे जाते हैं.
(वि.स) (वि. स)


मेरी केवल यह इच्छा है कि प्रतिवर्ष यथेष्ठ संख्या में हमारे नवयुवकों को चीन जापान में आना चाहिए। मेरी केवल यह इच्छा है कि प्रतिवर्ष यथेष्ठ संख्या में हमारे नवयुवकों को चीन जापान में आना चाहिए. जापानी लोगों के लिए आज भारतवर्ष उच्च और श्रेष्ठ वस्तुओं का स्वप्नराज्य है। जापानी लोगों के लिए आज भारतवर्ष उच्च और श्रेष्ठ वस्तुओं का स्वप्नराज्य है. और तुम लोग क्या कर रहे हो? और तुम लोग क्या कर रहे हो? ... ... जीवन भर केवल बेकार बातें किया करते हो, व्यर्थ बकवाद करने वालो, तुम लोग क्या हो? जीवन भर केवल बेकार बातें किया करते हो, व्यर्थ बकवाद करने वालो, तुम लोग क्या हो? आओ, इन लोगों को देखो और उसके बाद जाकर लज्जा से मुँह छिपा लो। आओ, लो इन लोगों को देखो और उसके बाद जाकर लज्जा से मुँह छिपा. सठियाई बुध्दिवालो, तुम्हारी तो देश से बाहर निकलते ही जाति चली जायगी! सठियाई बुध्दिवालो, तुम्हारी तो देश से बाहर निकलते ही जाति जायगी चली! अपनी खोपडी में वर्षों के अन्धविश्वास का निरन्तर वृध्दिगत कूडा-कर्कट भरे बैठे, सैकडों वर्षों से केवल आहार की छुआछूत के विवाद में ही अपनी सारी शक्ति नष्ट करनेवाले, युगों के सामाजिक अत्याचार से अपनी सारी मानवता का गला घोटने वाले, भला बताओ तो सही, तुम कौन हो? अपनी खोपडी में वर्षों के अन्धविश्वास का निरन्तर वृध्दिगत - कूडा कर्कट भरे बैठे, सैकडों वर्षों से केवल आहार की छुआछूत के विवाद में ही अपनी सारी शक्ति नष्ट करनेवाले, युगों के सामाजिक अत्याचार से अपनी सारी मानवता का गला वाले घोटने, भला बताओ तो सही, तुम कौन हो? और तुम इस समय कर ही क्या रहे हो? और तुम इस समय कर ही क्या रहे हो? ...किताबें हाथ में लिए तुम केवल समुद्र के किनारे फिर रहे हो। ... किताबें हाथ में लिए तुम केवल समुद्र के किनारे फिर रहे हो. तीस रुपये की मुंशी - गीरी के लिए अथवा बहुत हुआ, तो एक वकील बनने के लिए जी - जान से तडप रहे हो -- यही तो भारतवर्ष के नवयुवकों की सबसे बडी महत्वाकांक्षा है। तीस रुपये की - मुंशी गीरी के लिए अथवा बहुत हुआ, तो एक वकील बनने के लिए जी - जान से तडप रहे हो - यही तो भारतवर्ष के नवयुवकों की सबसे बडी महत्वाकांक्षा है. तिस पर इन विद्यार्थियों के भी झुण्ड के झुण्द बच्चे पैदा हो जाते हैं, जो भूख से तडपते हुए उन्हें घेरकर ' रोटी दो, रोटी दो ' चिल्लाते रहते हैं। तिस पर इन विद्यार्थियों के भी झुण्ड के झुण्द बच्चे पैदा हो जाते हैं, जो भूख से तडपते हुए उन्हें 'घेरकर रोटी दो, रोटी' दो चिल्लाते रहते हैं. क्या समुद्र में इतना पानी भी न रहा कि तुम उसमें विश्वविद्यालय के डिप्लोमा, गाउन और पुस्तकों के समेत डूब मरो ? क्या समुद्र में इतना पानी भी न रहा कि तुम उसमें विश्वविद्यालय के डिप्लोमा, गाउन और पुस्तकों के समेत डूब मरो? आओ, मनुष्य बनो! आओ, मनुष्य बनो! उन पाखण्डी पुरोहितों को, जो सदैव उन्नत्ति के मार्ग में बाधक होते हैं, ठोकरें मारकर निकाल दो, क्योंकि उनका सुधार कभी न होगा, उन्के हृदय कभी विशाल न होंगे। उन पाखण्डी पुरोहितों को, जो सदैव उन्नत्ति के मार्ग में बाधक होते हैं, ठोकरें मारकर निकाल दो, क्योंकि उनका सुधार कभी न होगा, उन्के हृदय कभी विशाल न होंगे. उनकी उत्पत्ति तो सैकडों वर्षों के अन्धविश्वासों और अत्याचारों के फलस्वरूप हुई है। उनकी उत्पत्ति तो सैकडों वर्षों के अन्धविश्वासों और अत्याचारों के फलस्वरूप हुई है. पहले पुरोहिती पाखंड को ज़ड - मूल से निकाल फेंको। पहले पुरोहिती पाखंड को - ज़ड मूल से निकाल फेंको. आओ, मनुष्य बनो। आओ, मनुष्य बनो. कूपमंडूकता छोडो और बाहर दृष्टि डालो। कूपमंडूकता छोडो और बाहर दृष्टि डालो. देखो, अन्य देश किस तरह आगे बढ रहे हैं। देखो, अन्य देश किस तरह आगे बढ रहे हैं. क्या तुम्हे मनुष्य से प्रेम है? क्या तुम्हे मनुष्य से प्रेम है? यदि 'हाँ' तो आओ, हम लोग उच्चता और उन्नति के मार्ग में प्रयत्नशील हों। 'यदि' हाँ तो आओ, हम लोग उच्चता और उन्नति के मार्ग में हों प्रयत्नशील. पीछे मुडकर मत देखो; अत्यन्त निकट और प्रिय सम्बन्धी रोते हों, तो रोने दो, पिछे देखो ही मत। पीछे मुडकर मत, देखो अत्यन्त निकट और प्रिय सम्बन्धी हों रोते, तो रोने दो, पिछे देखो ही मत. केवल आगे बढते जाओ। केवल आगे बढते जाओ. भारतमाता कम से कम एक हज़ार युवकों का बलिदान चाहती है -- मस्तिष्क - वाले युवकों का, पशुओं का नहीं। भारतमाता कम से कम एक हज़ार युवकों का बलिदान चाहती - है मस्तिष्क - वाले का युवकों, पशुओं का नहीं. परमात्मा ने तुम्हारी इस निश्चेष्ट सभ्यता को तोडने के लिए ही अंग्रेज़ी राज्य को भारत में भेजा है... ( वि.स.१/३९८-९९) परमात्मा ने तुम्हारी इस निश्चेष्ट सभ्यता को तोडने के लिए ही अंग्रेज़ी राज्य को भारत में भेजा है ... (वि.स. 1/398-99)

न संख्या-शक्ति, न धन, न पाण्डित्य, न वाक चातुर्य, कुछ भी नहीं, बल्कि पवित्रता, शुध्द जीवन, एक शब्द में अनुभूति, आत्म-साक्षात्कार को विजय मिलेगी! न संख्या - शक्ति, न धन, न पाण्डित्य, न वाक चातुर्य, कुछ भी नहीं, बल्कि पवित्रता, शुध्द जीवन, एक शब्द में अनुभूति, आत्म - साक्षात्कार को विजय मिलेगी! प्रत्येक देश में सिंह जैसी शक्तिमान दस-बारह आत्माएँ होने दो, जिन्होने अपने बन्धन तोड डाले हैं, जिन्होने अनन्त का स्पर्श कर लिया है, जिन्का चित्र ब्रह्मनुसन्धान में लीन है, जो न धन की चिन्ता करते हैं, न बल की, न नाम की और ये व्यक्ति ही संसार को हिला डालने के लिए पर्याप्त होंगे। (वि.स.४/३३६) प्रत्येक देश में सिंह जैसी शक्तिमान - दस बारह आत्माएँ दो होने, जिन्होने अपने बन्धन तोड डाले हैं, जिन्होने अनन्त का स्पर्श कर लिया है, जिन्का चित्र ब्रह्मनुसन्धान में लीन है, जो न धन की चिन्ता करते हैं, न बल की, न नाम की और ये व्यक्ति ही संसार को हिला डालने के लिए पर्याप्त होंगे. (वि.स. 4 336 /)

यही रहस्य है। यही रहस्य है. योग प्रवर्तक पंतजलि कहते हैं, " जब मनुष्य समस्त अलौकेक दैवी शक्तियों के लोभ का त्याग करता है, तभी उसे धर्म मेघ नामक समाधि प्राप्त होती है। वह प्रमात्मा का दर्शन करता है, वह परमात्मा बन जाता है और दूसरों को तदरूप बनने में सहायता करता है। मुझे इसीका प्रचार करना है। जगत् में अनेक मतवादों का प्रचार हो चुका है। लाखों पुस्तकें हैं, परन्तु हाय! कोई भी किंचित् अंश में प्रत्य्क्ष आचरण नहीं करता। (वि.स.४/३३७) योग प्रवर्तक पंतजलि कहते हैं, "जब मनुष्य समस्त अलौकेक दैवी शक्तियों के लोभ का त्याग करता है, तभी उसे धर्म मेघ नामक समाधि प्राप्त होती है वह. प्रमात्मा का दर्शन करता है, वह परमात्मा बन जाता है और दूसरों को तदरूप बनने में करता सहायता है. मुझे इसीका प्रचार करना है. जगत् में अनेक मतवादों का प्रचार हो चुका है. लाखों पुस्तकें हैं, हाय परन्तु! कोई भी किंचित् अंश में प्रत्य्क्ष आचरण नहीं करता. (वि.स. 4 337 /)


एक महान रहस्य का मैंने पता लगा लिया है -- वह यह कि केवल धर्म की बातें करने वालों से मुझे कुछ भय नहीं है। एक महान रहस्य का मैंने पता लगा लिया - है वह यह कि केवल धर्म की बातें करने वालों से मुझे कुछ भय नहीं है. और जो सत्यद्र्ष्ट महात्मा हैं, वे कभी किसी से बैर नहीं करते। और जो सत्यद्र्ष्ट महात्मा हैं, वे कभी किसी से बैर नहीं करते. वाचालों को वाचाल होने दो! वाचालों को वाचाल होने दो! वे इससे अधिक और कुछ नहीं जानते! वे इससे अधिक और कुछ नहीं जानते! उन्हे नाम, यश, धन, स्त्री से सन्तोष प्राप्त करने दो। उन्हे नाम, यश, धन, स्त्री से सन्तोष प्राप्त करने दो. और हम धर्मोपलब्धि, ब्रह्मलाभ एवं ब्रह्म होने के लिए ही दृढव्रत होंगे। और हम धर्मोपलब्धि, ब्रह्मलाभ एवं ब्रह्म होने के लिए ही होंगे दृढव्रत. हम आमरण एवं जन्म-जन्मान्त में सत्य का ही अनुसरण करेंगें। हम आमरण एवं - जन्म जन्मान्त में सत्य का ही अनुसरण करेंगें. दूसरों के कहने पर हम तनिक भी ध्यान न दें और यदि आजन्म यत्न के बाद एक, देवल एक ही आत्मा संसार के बन्धनों को तोडकर मुक्त हो सके तो हमने अपना काम कर लिया। दूसरों के कहने पर हम तनिक भी ध्यान न दें और यदि आजन्म यत्न के बाद एक, देवल एक ही आत्मा संसार के बन्धनों को तोडकर मुक्त हो सके तो हमने अपना काम कर लिया. (वि.स. ४/३३७) (वि.स. 4 337 /)


जो सबका दास होता है, वही उन्का सच्चा स्वामी होता है। जो सबका दास होता है, वही उन्का सच्चा स्वामी होता है. जिसके प्रेम में ऊँच - नीच का विचार होता है, वह कभी नेता नहीं बन सकता। जिसके प्रेम में - ऊँच नीच का विचार है होता, वह कभी नेता नहीं बन सकता. जिसके प्रेम का कोई अन्त नहीं है, जो ऊँच - नीच सोचने के लिए कभी नहीं रुकता, उसके चरणों में सारा संसार लोट जाता है। (वि.स. ४/४०३) जिसके प्रेम का कोई अन्त नहीं है, जो ऊँच - नीच सोचने के लिए कभी नहीं रुकता, उसके चरणों में सारा संसार लोट जाता है. (वि.स. 4 403 /)
वत्स, धीरज रखो, काम तुम्हारी आशा से बहुत ज्यादा बढ जाएगा। वत्स, धीरज रखो, काम तुम्हारी आशा से बहुत ज्यादा बढ जाएगा. हर एक काम में सफलता प्राप्त करने से पहले सैंकडो कठिनाइयों का सामना करना पडता है। हर एक काम में सफलता प्राप्त करने से पहले सैंकडो कठिनाइयों का सामना करना पडता है. जो उद्यम करते रहेंगे, वे आज या कल जो उद्यम करते रहेंगे, वे आज या कल
सफलता को देखेंगे। सफलता को देखेंगे. परिश्रम करना है वत्स, कठिन परिश्रम्! परिश्रम करना है वत्स, कठिन परिश्रम्! काम कांचन के इस चक्कर में अपने आप को स्थिर रखना, और अपने आदर्शों पर जमे रहना, जब तक कि आत्मज्ञान और पूर्ण त्याग के साँचे काम कांचन के इस चक्कर में अपने आप को स्थिर रखना, और अपने आदर्शों पर जमे रहना, जब तक कि आत्मज्ञान और पूर्ण त्याग के साँचे
में शिष्य न ढल जाय निश्चय ही कठिन काम है। में शिष्य न ढल जाय निश्चय ही कठिन काम है. जो प्रतिक्षा करता है, उसे सब चीज़े मिलती हैं। जो प्रतिक्षा करता है, उसे सब चीज़े मिलती हैं. अनन्त काल तक तुम भाग्यवान बने रहो। (वि.स. ४/३८७) अनन्त काल तक तुम भाग्यवान बने रहो. (वि.स. 4 387 /)

अकेले रहो, अकेले रहो। अकेले रहो, अकेले रहो. जो अकेला रहता है, उसका किसीसे विरोध नहीं होता, वह किसीकी शान्ति भंग नहीं करता, न दूसरा कोई उसकी शान्ति भंग करता है। (वि.स. ४/३८१) जो अकेला रहता है, उसका किसीसे विरोध नहीं होता, वह किसीकी शान्ति भंग नहीं करता, न दूसरा कोई उसकी शान्ति भंग करता है. (वि.स. 4 381 /)

मेरी दृढ धारणा है कि तुममें अन्धविश्वास नहीं है। मेरी दृढ धारणा है कि तुममें अन्धविश्वास नहीं है. तुममें वह शक्ति विद्यमान है, जो संसार को हिला सकती है, धीरे - धीरे और भी अन्य लोग आयेंगे। तुममें वह शक्ति विद्यमान है, जो संसार को हिला सकती है, धीरे - धीरे और भी अन्य आयेंगे लोग. 'साहसी' शब्द और उससे अधिक 'साहसी' कर्मों की हमें 'और उससे' अधिक 'साहसी कर्मों की हमें साहसी' शब्द
आवश्यकता है। आवश्यकता है. उठो! उठो! उठो! उठो! संसार दुःख से जल रहा है। संसार दुःख से जल रहा है. क्या तुम सो सकते हो? क्या तुम सो सकते हो? हम बार - बार पुकारें, जब तक सोते हुए देवता न जाग उठें, जब तक अन्तर्यामी देव उस पुकार का उत्तर न दें। हम - बार बार पुकारें, जब तक सोते हुए देवता न जाग उठें, जब तक अन्तर्यामी देव उस पुकार का उत्तर दें न. जीवन में जीवन में
और क्या है? और क्या है? इससे महान कर्म क्या है? (वि.स. ४/४०८) इससे महान कर्म क्या है? (वि.स. 4 408 /)

(स्वामी विवेकानन्द)

अग्नी मंत्र (स्वामी विवेकानन्द)

हे सखे, तुम क्योँ रो रहे हो ? हे सखे, तुम क्योँ रो रहे हो? सब शक्ति तो तुम्हीं में हैं। सब शक्ति तो तुम्हीं में हैं. हे भगवन्, अपना ऐश्वर्यमय स्वरूप को विकसित करो। हे भगवन्, अपना ऐश्वर्यमय स्वरूप को विकसित करो. ये तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीचे हैं। ये तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीचे हैं. जड की कोई शक्ति नहीं प्रबल शक्ति आत्मा की हैं। जड की कोई शक्ति नहीं प्रबल शक्ति आत्मा की हैं. हे विद्वन! हे विद्वन! डरो मत्; तुम्हारा नाश नहीं हैं, संसार-सागर से पार उतरने का उपाय हैं। डरो मत्; तुम्हारा नाश नहीं हैं, संसार - सागर से पार उतरने का हैं उपाय. जिस पथ के अवलम्बन से यती लोग संसार-सागर के पार उतरे हैं, वही श्रेष्ठ पथ मै तुम्हे दिखाता हूँ! (वि.स. ६/८) मन्त्र क्र.१ जिस पथ के अवलम्बन से यती लोग - संसार सागर के पार हैं उतरे, वही श्रेष्ठ पथ मै तुम्हे दिखाता हूँ! (6 / 8 वि.स.) मन्त्र क्र .1

बडे-बडे दिग्गज बह जायेंगे। बडे - बडे दिग्गज बह जायेंगे. छोटे-मोटे की तो बात ही क्या है! - छोटे मोटे की तो बात ही क्या है! तुम लोग कमर कसकर कार्य में जुट जाओ, हुंकार मात्र से हम दुनिया को पलट देंगे। तुम लोग कमर कसकर कार्य में जुट जाओ, हुंकार मात्र से हम दुनिया को पलट देंगे. अभी तो केवल मात्र प्रारम्भ ही है। अभी तो केवल मात्र प्रारम्भ ही है. किसी के साथ विवाद न कर हिल-मिलकर अग्रसर हो -- यह दुनिया भयानक है, किसी पर विश्वास नहीं है। किसी के साथ विवाद न कर - हिल मिलकर अग्रसर हो - यह दुनिया है भयानक, किसी पर विश्वास नहीं है. डरने का कोई कारण नहीं है, माँ मेरे साथ हैं -- इस बार ऐसे कार्य होंगे कि तुम चकित हो जाओगे। डरने का कोई कारण नहीं है, माँ मेरे साथ हैं - इस बार ऐसे कार्य होंगे कि तुम चकित जाओगे हो. भय किस बात का? भय किस बात का? किसका भय? किसका भय? वज्र जैसा हृदय बनाकर कार्य में जुट जाओ। वज्र जैसा हृदय बनाकर कार्य में जुट जाओ.
(विवेकानन्द साहित्य खण्ड-४पन्ना-३१५) (४/३१५) (विवेकानन्द साहित्य खण्ड -4 पन्ना -315) (4 315 /)

तुमने बहुत बहादुरी की है। तुमने बहुत बहादुरी की है. शाबाश! शाबाश! हिचकने वाले पीछे रह जायेंगे और तुम कुद कर सबके आगे पहुँच जाओगे। हिचकने वाले पीछे रह जायेंगे और तुम कुद कर सबके आगे पहुँच जाओगे. जो अपना उध्दार में लगे हुए हैं, वे न तो अपना उद्धार ही कर सकेंगे और न दूसरों का। जो अपना उध्दार में लगे हुए हैं, वे न तो अपना उद्धार ही कर सकेंगे और न का दूसरों. ऐसा शोर - गुल मचाओ की उसकी आवाज़ दुनिया के कोने कोने में फैल जाय। ऐसा - शोर गुल मचाओ की उसकी आवाज़ दुनिया के कोने कोने में फैल जाय. कुछ लोग ऐसे हैं, जो कि दूसरों की त्रुटियों को देखने के लिए तैयार बैठे हैं, किन्तु कार्य करने के समय उनका पता नही चलता है। कुछ लोग ऐसे हैं, जो कि दूसरों की त्रुटियों को देखने के लिए तैयार बैठे हैं, किन्तु कार्य करने के समय उनका पता नही है चलता. जुट जाओ, अपनी शक्ति के अनुसार आगे बढो।इसके बाद मैं भारत पहुँच कर सारे देश में उत्तेजना फूँक दूंगा। जुट जाओ, अपनी शक्ति के अनुसार आगे बढो इसके. बाद मैं भारत पहुँच कर सारे देश में उत्तेजना दूंगा फूँक. डर किस बात का है? डर किस बात का है? नहीं है, नहीं है, कहने से साँप का विष भी नहीं रहता है। नहीं है, नहीं है, कहने से साँप का विष भी नहीं है रहता. नहीं नहीं कहने से तो 'नहीं' हो जाना पडेगा। नहीं नहीं कहने से 'तो' नहीं हो जाना पडेगा. खूब शाबाश! खूब शाबाश! छान डालो - सारी दूनिया को छान डालो! छान - डालो सारी दूनिया को छान डालो! अफसोस इस बात का है कि यदि मुझ जैसे दो - चार व्यक्ति भी तुम्हारे साथी होते - तमाम संसार हिल उठता। अफसोस इस बात का है कि यदि मुझ जैसे - दो चार व्यक्ति भी तुम्हारे साथी होते - तमाम संसार हिल उठता. क्या करूँ धीरे - धीरे अग्रसर होना पड रहा है। क्या करूँ - धीरे धीरे अग्रसर होना पड रहा है. तूफ़ान मचा दो तूफ़ान! (वि.स. ४/३८७) तूफ़ान मचा दो तूफ़ान! (वि.स. 4 387 /)

किसी बात से तुम उत्साहहीन न होओ; जब तक ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर है, कौन इस पृथ्वी पर हमारी उपेक्षा कर सकता है? किसी बात से तुम उत्साहहीन न; होओ जब तक ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर है, कौन इस पृथ्वी पर हमारी उपेक्षा कर सकता है? यदि तुम अपनी अन्तिम साँस भी ले रहे हो तो भी न डरना। यदि तुम अपनी अन्तिम साँस भी ले रहे हो तो भी न डरना. सिंह की शूरता और पुष्प की कोमलता के साथ काम करते रहो। (वि.स.४/३२०) सिंह की शूरता और पुष्प की कोमलता के साथ काम करते रहो. (वि.स. 4 320 /)

लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्मी तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहान्त आज हो या एक युग मे, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो। (वि.स.६/८८) मन्त्र क्र.३ लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्मी तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहान्त आज हो या एक युग मे, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो. (वि.स. 6 88 /) मन्त्र क्र .3

श्रेयांसि बहुविघ्नानि अच्छे कर्मों में कितने ही विघ्न आते हैं। श्रेयांसि बहुविघ्नानि अच्छे कर्मों में कितने ही विघ्न आते हैं. -- प्रलय मचाना ही होगा, इससे कम में किसी तरह नहीं चल सकता। - प्रलय मचाना ही होगा, इससे कम में किसी तरह नहीं चल सकता. कुछ परवाह नहीं। कुछ परवाह नहीं. दुनीया भर में प्रलय मच जायेगा, दुनीया भर में प्रलय मच जायेगा, वाह! वाह! गुरु की फतह! अरे भाई श्रेयांसि बहुविघ्नानि , उन्ही विघ्नों की रेल पेल में आदमी तैयार होता है। गुरु की फतह! अरे भाई श्रेयांसि बहुविघ्नानि, उन्ही विघ्नों की रेल पेल में आदमी तैयार है होता. मिशनरी फिशनरी का काम थोडे ही है जो यह धक्का सम्हाले! मिशनरी फिशनरी का काम थोडे ही है जो यह धक्का सम्हाले! ....बडे - बडे बह गये, अब गडरिये का काम है जो थाह ले? .... - बडे बडे बह गये, अब गडरिये का काम है जो थाह ले? यह सब नहीं चलने का भैया, कोई चिन्ता न करना। यह सब नहीं चलने का भैया, कोई चिन्ता न करना. सभी कामों में एक दल शत्रुता ठानता है; अपना काम करते जाओ किसी की बात का जवाब देने से क्या काम? सभी कामों में एक दल शत्रुता ठानता, है अपना काम करते जाओ किसी की बात का जवाब देने से क्या काम? सत्यमेव जयते नानृतं, सत्येनैव पन्था विततो देवयानः (सत्य की ही विजय होती है, मिथ्या की नहीं; सत्य के ही बल से देवयानमार्ग की गति मिलती है।) ...धीरे - धीरे सब होगा। सत्यमेव जयते नानृतं, सत्येनैव पन्था विततो (देवयानः सत्य की ही विजय होती है, मिथ्या की नहीं, सत्य के ही बल से देवयानमार्ग की गति मिलती है). ... धीरे - धीरे सब होगा.

वीरता से आगे बढो। वीरता से आगे बढो. एक दिन या एक साल में सिध्दि की आशा न रखो। एक दिन या एक साल में सिध्दि की आशा न रखो. उच्चतम आदर्श पर दृढ रहो। उच्चतम आदर्श पर दृढ रहो. स्थिर रहो। स्थिर रहो. स्वार्थपरता और ईर्ष्या से बचो। स्वार्थपरता और ईर्ष्या से बचो. आज्ञा - पालन करो। आज्ञा - पालन करो. सत्य, मनुष्य -- जाति और अपने देश के पक्ष पर सदा के लिए अटल रहो, और तुम संसार को हिला दोगे। सत्य, मनुष्य - जाति और अपने देश के पक्ष पर सदा के लिए अटल रहो, और तुम संसार को हिला दोगे. याद रखो -- व्यक्ति और उसका जीवन ही शक्ति का स्रोत है, इसके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं। (वि.स. ४/३९५) याद - रखो व्यक्ति और उसका जीवन ही शक्ति का है स्रोत, इसके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं. (वि.स. 4 395 /)

...इस तरह का दिन क्या कभी होगा कि परोपकार के लिए जान जायेगी? ... इस तरह का दिन क्या कभी होगा कि परोपकार के लिए जान जायेगी? दुनिया बच्चों का खिलवाड नहीं है -- बडे आदमी वो हैं जो अपने हृदय-रुधिर से दूसरों का रास्ता तैयार करते हैं- यही सदा से होता आया है -- एक आदमी अपना शरीर-पात करके सेतु निर्माण करता है, और हज़ारों आदमी उसके ऊपर से नदी पार करते हैं। एवमस्तु एवमस्तु, शिवोsहम् शिवोsहम् (ऐसा ही हो, ऐसा ही हो- मैं ही शिव हूँ, मैं ही शिव हूँ। ) दुनिया बच्चों का खिलवाड नहीं - है बडे आदमी वो हैं जो अपने हृदय - रुधिर से दूसरों का रास्ता तैयार करते हैं - यही सदा से होता आया है - एक आदमी अपना शरीर - पात करके सेतु निर्माण है करता, और हज़ारों आदमी उसके ऊपर से नदी पार करते हैं एवमस्तु. एवमस्तु, शिवो s हम् शिवो (s हम् ऐसा ही हो, ऐसा ही हो - मैं ही शिव हूँ, मैं ही शिव हूँ.)

मैं चाहता हूँ कि मेरे सब बच्चे, मैं जितना उन्नत बन सकता था, उससे सौगुना उन्न्त बनें। मैं चाहता हूँ कि मेरे सब बच्चे, मैं जितना उन्नत बन सकता था, उससे सौगुना उन्न्त बनें. तुम लोगों में से प्रत्येक को महान शक्तिशाली बनना होगा- मैं कहता हूँ, अवश्य बनना होगा। तुम लोगों में से प्रत्येक को महान शक्तिशाली बनना - होगा मैं हूँ कहता, अवश्य बनना होगा. आज्ञा-पालन, ध्येय के प्रति अनुराग तथा ध्येय को कार्यरूप में परिणत करने के लिए सदा प्रस्तुत रहना -- इन तीनों के रहने पर कोई भी तुम्हे अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकता। (वि.स.६/३५२) आज्ञा - पालन, ध्येय के प्रति अनुराग तथा ध्येय को कार्यरूप में परिणत करने के लिए सदा प्रस्तुत रहना - इन तीनों के रहने पर कोई भी तुम्हे अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकता. (वि.स. 6 352 /)

मन और मुँह को एक करके भावों को जीवन में कार्यान्वित करना होगा। मन और मुँह को एक करके भावों को जीवन में कार्यान्वित करना होगा. इसीको श्री रामकृष्ण कहा करते थे, इसीको श्री रामकृष्ण कहा करते थे, "भाव के घर में किसी प्रकार की चोरी न होने पाये।" सब विषओं में व्यवहारिक बनना होगा। "भाव के घर में किसी प्रकार की चोरी न होने पाये बनना होगा." सब विषओं में व्यवहारिक. लोगों या समाज की बातों पर ध्यान न देकर वे एकाग्र मन से अपना कार्य करते रहेंगे क्या तुने नहीं सुना, कबीरदास के दोहे में है- "हाथी चले बाजार में, कुत्ता भोंके हजार साधुन को दुर्भाव नहिं, जो निन्दे संसार" ऐसे ही चलना है। लोगों या समाज की बातों पर ध्यान न देकर वे एकाग्र मन से अपना कार्य करते रहेंगे क्या तुने नहीं सुना, कबीरदास के दोहे में है - "हाथी चले बाजार में, कुत्ता भोंके हजार साधुन को दुर्भाव नहिं, जो निन्दे संसार चलना है" ऐसे ही . दुनिया के लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देना होगा। दुनिया के लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देना होगा. उनकी भली बुरी बातों को सुनने से जीवन भर कोई किसी प्रकार का महत् कार्य नहीं कर सकता। (वि.स.३/३८१) उनकी भली बुरी बातों को सुनने से जीवन भर कोई किसी प्रकार का महत् कार्य नहीं कर सकता. (381 / 3 वि.स.)

अन्त में प्रेम की ही विजय होती है। अन्त में प्रेम की ही विजय होती है. हैरान होने से काम नहीं चलेगा- ठहरो- धैर्य धारण करने पर सफलता अवश्यम्भावी है- तुमसे कहता हूँ देखना- कोई बाहरी अनुष्ठानपध्दति आवश्यक न हो- बहुत्व में एकत्व सार्वजनिन भाव में किसी तरह की बाधा न हो। हैरान होने से काम नहीं - चलेगा ठहरो - धैर्य धारण करने पर सफलता अवश्यम्भावी है - तुमसे कहता हूँ देखना - कोई बाहरी अनुष्ठानपध्दति आवश्यक न हो - बहुत्व में एकत्व सार्वजनिन भाव में किसी तरह की बाधा न हो. यदि आवश्यक हो तो "सार्वजनीनता" के भाव की रक्षा के लिए सब कुछ छोडना होगा। आवश्यक हो तो "सार्वजनीनता होगा यदि" के भाव की रक्षा के लिए सब कुछ छोडना. मैं मरूँ चाहे बचूँ, देश जाऊँ या न जाऊँ, तुम लोग अच्छी तरह याद रखना कि, सार्वजनीनता- हम लोग केवल इसी भाव का प्रचार नहीं करते कि, "दुसरों के धर्म का द्वेष न करना" ; नहीं, हम सब लोग सब धर्मों को सत्य समझते हैं और उन्का ग्रहण भी पूर्ण रूप से करते हैं हम इसका प्रचार भी करते हैं और इसे कार्य में परिणत कर दिखाते हैं सावधान रहना, दूसरे के अत्यन्त छोटे अधिकार में भी हस्तक्षेप न करना - इसी भँवर में बडे-बडे जहाज डूब जाते हैं पुरी भक्ति, परन्तु कट्टरता छोडकर, दिखानी होगी, याद रखना उन्की कृपा से सब ठीक हो जायेगा। मैं मरूँ चाहे बचूँ, देश जाऊँ या न जाऊँ, तुम लोग अच्छी तरह याद रखना कि, सार्वजनीनता - हम लोग केवल इसी भाव का प्रचार नहीं करते कि, "दुसरों के धर्म का द्वेष न"; करना नहीं, हम सब लोग सब धर्मों को सत्य समझते हैं और उन्का ग्रहण भी पूर्ण रूप से करते हैं हम इसका प्रचार भी करते हैं और इसे कार्य में परिणत कर दिखाते हैं सावधान रहना, दूसरे के अत्यन्त छोटे अधिकार में भी हस्तक्षेप न करना - इसी भँवर में बडे - बडे जहाज डूब जाते हैं पुरी भक्ति, परन्तु कट्टरता छोडकर, दिखानी होगी, याद रखना उन्की कृपा से सब ठीक जायेगा हो.

जिस तरह हो, इसके लिए हमें चाहे जितना कष्ट उठाना पडे- चाहे कितना ही त्याग करना पडे यह भाव (भयानक ईर्ष्या) हमारे भीतर न घुसने पाये- हम दस ही क्यों न हों- दो क्यों न रहें- परवाह नहीं परन्तु जितने हों सम्पूर्ण शुध्दचरित्र हों। जिस तरह हो, इसके लिए हमें चाहे जितना कष्ट उठाना पडे - चाहे कितना ही त्याग करना पडे भाव यह (भयानक) ईर्ष्या हमारे भीतर न घुसने पाये - हम दस ही क्यों न हों - दो क्यों न रहें - परवाह नहीं परन्तु जितने हों सम्पूर्ण शुध्दचरित्र हों.

नीतिपरायण तथा नीतिपरायण तथा साहसी बनो, अन्त: करण पूर्णतया शुध्द रहना चाहिए। साहसी बनो, अन्त: करण पूर्णतया शुध्द चाहिए रहना. पूर्ण नीतिपरायण तथा साहसी बनो -- प्रणों के लिए भी कभी न डरो। पूर्ण नीतिपरायण तथा साहसी - बनो प्रणों के लिए भी कभी न डरो. कायर लोग ही पापाचरण करते हैं, वीर पुरूष कभी भी पापानुष्ठान नहीं करते -- यहाँ तक कि कभी वे मन में भी पाप का विचार नहीं लाते। कायर लोग ही पापाचरण करते हैं, वीर पुरूष कभी भी पापानुष्ठान नहीं करते - यहाँ तक कि कभी वे मन में भी पाप का विचार लाते नहीं. प्राणिमात्र से प्रेम करने का प्रयास करो। प्राणिमात्र से प्रेम करने का प्रयास करो. बच्चो, तुम्हारे लिए नीतिपरायणता तथा साहस को छोडकर और कोई दूसरा धर्म नहीं। बच्चो, लिए नीतिपरायणता तथा साहस को छोडकर और कोई दूसरा धर्म नहीं तुम्हारे. इसके सिवाय और कोई धार्मिक मत-मतान्तर तुम्हारे लिए नहीं है। इसके सिवाय और कोई धार्मिक - मत मतान्तर तुम्हारे लिए नहीं है. कायरता, पाप्, असदाचरण तथा दुर्बलता तुममें एकदम नहीं रहनी चाहिए, बाक़ी आवश्यकीय वस्तुएँ अपने आप आकर उपस्थित होंगी। (वि.स.१/३५०) कायरता, पाप्, असदाचरण तथा दुर्बलता तुममें एकदम नहीं रहनी चाहिए, बाक़ी आवश्यकीय वस्तुएँ अपने आप आकर उपस्थित होंगी. (350 1 / वि.स.)

शक्तिमान, उठो तथा सामर्थ्यशाली बनो। शक्तिमान, उठो तथा सामर्थ्यशाली बनो. कर्म, निरन्तर कर्म; संघर्ष , निरन्तर संघर्ष! कर्म, निरन्तर कर्म, संघर्ष, निरन्तर संघर्ष! अलमिति। अलमिति. पवित्र और निःस्वार्थी बनने की कोशिश करो -- सारा धर्म इसी में है। (वि.स.१/३७९) पवित्र और निःस्वार्थी बनने की कोशिश - करो सारा धर्म इसी में है. (379 1 / वि.स.)

क्या संस्कृत पढ रहे हो? क्या संस्कृत पढ रहे हो? कितनी प्रगति होई है? कितनी प्रगति होई है? आशा है कि प्रथम भाग तो अवश्य ही समाप्त कर चुके होगे। आशा है कि प्रथम भाग तो अवश्य ही समाप्त कर चुके होगे. विशेष परिश्रम के साथ संस्कृत सीखो। (वि.स.१/३७९-८०) विशेष परिश्रम के साथ संस्कृत सीखो. वि.स. 1/379-80 ()

शत्रु को पराजित करने के लिए ढाल तथा तलवार की आवश्यकता होती है। शत्रु को पराजित करने के लिए ढाल तथा तलवार की आवश्यकता होती है. इसलिए अंग्रेज़ी और संस्कृत का अध्ययन मन लगाकर करो। (वि.स.४/३१९) इसलिए अंग्रेज़ी और संस्कृत का अध्ययन मन लगाकर करो. (वि.स. 4 319 /)

बच्चों, धर्म का रहस्य आचरण से जाना जा सकता है, व्यर्थ के मतवादों से नहीं। बच्चों, धर्म का रहस्य आचरण से जाना जा सकता है, व्यर्थ के मतवादों से नहीं. सच्चा बनना तथा सच्चा बर्ताव करना, इसमें ही समग्र धर्म निहित है। सच्चा बनना तथा सच्चा बर्ताव करना, इसमें ही समग्र धर्म निहित है. जो केवल प्रभु-प्रभु की रट लगाता है, वह नहीं, किन्तु जो उस परम पिता के इच्छानुसार कार्य करता है वही धार्मिक है। जो केवल - प्रभु प्रभु की रट है लगाता, वह नहीं, किन्तु जो उस परम पिता के इच्छानुसार कार्य करता है वही धार्मिक है. यदि कभी कभी तुमको संसार का थोडा-बहुत धक्का भी खाना पडे, तो उससे विचलित न होना, मुहूर्त भर में वह दूर हो जायगा तथा सारी स्थिति पुनः ठीक हो जायगी। (वि.स.१/३८०) यदि कभी कभी तुमको संसार का - थोडा बहुत धक्का भी पडे खाना, तो उससे विचलित न होना, मुहूर्त भर में वह दूर हो जायगा तथा सारी स्थिति पुनः ठीक हो जायगी. (380 1 / वि.स.)

बालकों, दृढ बने रहो, मेरी सन्तानों में से कोई भी कायर न बने। बालकों, दृढ बने रहो, मेरी सन्तानों में से कोई भी कायर न बने. तुम लोगों में जो सबसे अधिक साहसी है - सदा उसीका साथ करो। तुम लोगों में जो सबसे अधिक साहसी - है सदा उसीका साथ करो. बिना विघ्न - बाधाओं के क्या कभी कोई महान कार्य हो सकता है? बिना - विघ्न बाधाओं के क्या कभी कोई महान कार्य हो सकता है? समय, धैर्य तथा अदम्य इच्छा-शक्ति से ही कार्य हुआ करता है। समय, धैर्य तथा अदम्य इच्छा - से ही कार्य हुआ करता है शक्ति. मैं तुम लोगों को ऐसी बहुत सी बातें बतलाता, जिससे तुम्हारे हृदय उछल पडते, किन्तु मैं ऐसा नहीं करूँगा। मैं तुम लोगों को ऐसी बहुत सी बातें बतलाता, जिससे तुम्हारे हृदय उछल पडते, किन्तु मैं ऐसा नहीं करूँगा. मैं तो लोहे के सदृश दृढ इच्छा-शक्ति सम्पन्न हृदय चाहता हूँ, जो कभी कम्पित न हो। मैं तो लोहे के सदृश दृढ - इच्छा शक्ति सम्पन्न हृदय हूँ चाहता, जो कभी कम्पित न हो. दृढता के साथ लगे रहो, प्रभु तुम्हें आशीर्वाद दे। दृढता के साथ लगे रहो, प्रभु तुम्हें आशीर्वाद दे. सदा शुभकामनाओं के साथ तुम्हारा विवेकानन्द। (वि.स.४/३४०) सदा शुभकामनाओं के साथ तुम्हारा विवेकानन्द. (वि.स. 4 340 /)

'जब तक जीना, तब तक सीखना' -- अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। (वि.स.१/३८६) जीना 'जब तक, तब तक' सीखना - अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है. (386 1 / वि.स.)

जीस प्रकार स्वर्ग में, उसी प्रकार इस नश्वर जगत में भी तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो, क्योंकि अनन्त काल के लिए जगत में तुम्हारी ही महिमा घोषित हो रही है एवं सब कुछ तुम्हारा ही राज्य है। (वि.स.१/३८७) जीस प्रकार स्वर्ग में, उसी प्रकार इस नश्वर जगत में भी तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो, क्योंकि अनन्त काल के लिए जगत में तुम्हारी ही महिमा घोषित हो रही है एवं सब कुछ तुम्हारा ही राज्य है. (387 1 / वि.स.)

पवित्रता, दृढता तथा उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूँ। (वि.स.४/३४७) पवित्रता, दृढता तथा उद्यम - ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूँ. (वि.स. 4 347 /)

भाग्य बहादुर और कर्मठ व्यक्ति का ही साथ देता है। भाग्य बहादुर और कर्मठ व्यक्ति का ही साथ देता है. पीछे मुडकर मत देखो आगे, अपार शक्ति, अपरिमित उत्साह, अमित साहस और निस्सीम धैर्य की आवश्यकता है- और तभी महत कार्य निष्पन्न किये जा सकते हैं। पीछे मुडकर मत देखो आगे, अपार शक्ति, अपरिमित उत्साह, अमित साहस और निस्सीम धैर्य की आवश्यकता है - और तभी महत कार्य निष्पन्न किये जा हैं सकते. हमें पूरे विश्व को उद्दीप्त करना है। (वि.स.४/३५१) हमें पूरे विश्व को उद्दीप्त करना है. (वि.स. 4 351 /)

पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं। पवित्रता, तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं धैर्य. इसमें कोई सन्देह नहीं कि महान कार्य सभी धीरे धीरे होते हैं। (वि.स.४/३५१) इसमें कोई सन्देह नहीं कि महान कार्य सभी धीरे धीरे होते हैं. (वि.स. 4 351 /)

साहसी होकर काम करो। साहसी होकर काम करो. धीरज और स्थिरता से काम करना -- यही एक मार्ग है। धीरज और स्थिरता से काम - करना यही एक मार्ग है. आगे बढो और याद रखो धीरज, साहस, पवित्रता और आगे बढो और याद रखो धीरज, साहस, पवित्रता और अनवरत कर्म। अनवरत कर्म. जब तक तुम पवित्र होकर अपने उद्देश्य पर डटे रहोगे, तब तक तुम कभी निष्फल नहीं होओगे -- माँ तुम्हें कभी न छोडेगी और पूर्ण आशीर्वाद के तुम पात्र हो जाओगे। (वि.स.४/३५६) जब तक तुम पवित्र होकर अपने उद्देश्य पर डटे रहोगे, तब तक तुम कभी निष्फल नहीं होओगे - माँ तुम्हें कभी न छोडेगी और पूर्ण आशीर्वाद के तुम पात्र हो जाओगे. (वि.स. 4 356 /)

बच्चों, जब तक तुम लोगों को भगवान तथा बच्चों, जब तक तुम लोगों को भगवान तथा गुरू में, भक्ति तथा सत्य में विश्वास रहेगा, तब तक कोई भी तुम्हें नुक़सान नहीं पहुँचा सकता। गुरू में, भक्ति तथा सत्य में विश्वास रहेगा, तब तक कोई भी तुम्हें नुक़सान नहीं सकता पहुँचा. किन्तु इनमें से एक के भी नष्ट हो जाने पर परिणाम विपत्तिजनक है। (वि.स.४/३३९) किन्तु इनमें से एक के भी नष्ट हो जाने पर परिणाम विपत्तिजनक है. (वि.स. 4 339 /)

महाशक्ति का तुममें संचार होगा -- कदापि भयभीत मत होना। महाशक्ति का तुममें संचार - होगा कदापि भयभीत मत होना. पवित्र होओ, विश्वासी होओ, और आज्ञापालक होओ। (वि.स.४/३६१) पवित्र होओ, विश्वासी होओ, और आज्ञापालक होओ. (वि.स. 4 361 /)

बिना पाखण्डी और कायर बने सबको प्रसन्न रखो। बिना पाखण्डी और कायर बने सबको प्रसन्न रखो. पवित्रता और शक्ति के साथ अपने आदर्श पर दृढ रहो और फिर तुम्हारे सामने कैसी भी बाधाएँ क्यों न हों, कुछ समय बाद संसार तुमको मानेगा ही। (वि.स.४/३६२) पवित्रता और शक्ति के साथ अपने आदर्श पर दृढ रहो और फिर तुम्हारे सामने कैसी भी बाधाएँ क्यों न हों, कुछ समय बाद संसार तुमको मानेगा ही. (वि.स. 4 362 /)

धीरज रखो और मृत्युपर्यन्त विश्वासपात्र रहो। धीरज रखो और मृत्युपर्यन्त विश्वासपात्र रहो. आपस में न लडो! आपस में न लडो! रुपये - पैसे के व्यवहार में शुध्द भाव रखो। - रुपये पैसे के व्यवहार में शुध्द भाव रखो. हम अभी महान कार्य करेंगे। हम अभी महान कार्य करेंगे. जब तक तुममें ईमानदारी, भक्ति और विश्वास है, तब तक प्रत्येक कार्य में तुम्हे सफलता मिलेगी। (वि.स.४/३६८) जब तक तुममें ईमानदारी, भक्ति और विश्वास है, तब तक प्रत्येक कार्य में तुम्हे सफलता मिलेगी. (वि.स. 4 368 /)

जो पवित्र तथा साहसी है, वही जगत् में सब कुछ कर सकता है। जो पवित्र तथा साहसी है, वही जगत् में सब कुछ कर सकता है. माया-मोह से प्रभु सदा तुम्हारी रक्षा करें। - माया मोह से प्रभु सदा तुम्हारी रक्षा करें. मैं तुम्हारे साथ काम करने के लिए सदैव प्रस्तुत हूँ एवं हम लोग यदि स्वयं अपने मित्र रहें तो प्रभु भी हमारे लिए सैकडों मित्र भेजेंगे, आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुः। (वि.स.४/२७६) मैं तुम्हारे साथ काम करने के लिए सदैव प्रस्तुत हूँ एवं हम लोग यदि स्वयं अपने मित्र रहें तो प्रभु भी हमारे लिए सैकडों मित्र भेजेंगे, आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुः. (वि.स. 4 276 /)

ईर्ष्या तथा अंहकार को दूर कर दो -- संगठित होकर दूसरों के लिए कार्य करना सीखो। (वि.स.४/२८०) ईर्ष्या तथा अंहकार को दूर कर - दो संगठित होकर दूसरों के लिए कार्य करना सीखो. (वि.स. 4 280 /)

पूर्णतः निःस्वार्थ रहो, पूर्णतः निःस्वार्थ रहो, स्थिर रहो, और काम करो। स्थिर रहो, और काम करो. एक बात और है। एक बात और है. सबके सेवक बनो और दूसरों पर शासन करने का तनिक भी यत्न न करो, क्योंकि इससे ईर्ष्या उत्पन्न होगी और इससे हर चीज़ बर्बाद हो जायेगी। सबके सेवक बनो और दूसरों पर शासन करने का तनिक भी यत्न न करो, क्योंकि इससे ईर्ष्या उत्पन्न होगी और इससे हर चीज़ बर्बाद हो जायेगी. आगे बढो तुमने बहुत अच्छा काम किया है। आगे बढो तुमने बहुत अच्छा काम किया है. हम अपने भीतर से ही सहायता लेंगे अन्य सहायता के लिए हम प्रतीक्षा नहीं करते। हम अपने भीतर से ही सहायता लेंगे अन्य सहायता के लिए हम प्रतीक्षा नहीं करते. मेरे बच्चे, आत्मविशवास रखो, सच्चे और सहनशील बनो। (वि.स.४/२८४) मेरे बच्चे, आत्मविशवास रखो, सच्चे और सहनशील बनो. (वि.स. 4 284 /)

यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खडे हो जाओगे, तो तुम्हे सहायता देने के लिए कोई भी आगे न बढेगा। यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खडे हो जाओगे, तो तुम्हे सहायता देने के लिए कोई भी आगे न बढेगा. यदि सफल होना चाहते हो, तो पहले 'अहं' ही नाश कर डालो। (वि.स.४/२८५) यदि सफल होना चाहते हो, तो 'पहले' अहं ही नाश कर डालो. (वि.स. 4 285 /)

पक्षपात ही सब अनर्थों का मूल है, यह न भूलना। पक्षपात ही सब अनर्थों का मूल है, यह न भूलना. अर्थात् यदि तुम किसी के प्रति अन्य की अपेक्षा अधिक प्रीति-प्रदर्शन करते हो, तो याद रखो उसीसे भविष्य में कलह का बिजारोपण होगा। (वि.स.४/३१२) अर्थात् यदि तुम किसी के प्रति अन्य की अपेक्षा अधिक - प्रीति प्रदर्शन करते हो, तो याद रखो उसीसे भविष्य में कलह का बिजारोपण होगा. (वि.स. 4 312 /)

यदि कोई तुम्हारे समीप अन्य किसी साथी की निन्दा करना चाहे, तो तुम उस ओर बिल्कुल ध्यान न दो। यदि कोई तुम्हारे समीप अन्य किसी साथी की निन्दा करना चाहे, तो तुम उस ओर बिल्कुल ध्यान न दो. इन बातों को सुनना भी महान् पाप है, उससे भविष्य में विवाद का सूत्रपात होगा। (वि.स.४/३१३) इन बातों को सुनना भी महान् पाप है, उससे भविष्य में विवाद का सूत्रपात होगा. (वि.स. 4 313 /)

गम्भीरता के साथ शिशु सरलता को मिलाओ। गम्भीरता के साथ शिशु सरलता को मिलाओ. सबके साथ मेल से रहो। सबके साथ मेल से रहो. अहंकार के सब भाव छोड दो और साम्प्रदायिक विचारों को मन में न लाओ। अहंकार के सब भाव छोड दो और साम्प्रदायिक विचारों को मन में न लाओ. व्यर्थ विवाद महापाप है। (वि.स.४/३१८) व्यर्थ विवाद महापाप है. (वि.स. 4 318 /)

बच्चे, जब तक तुम्हारे हृदय में उत्साह एवं गुरू तथा ईश्वर में विश्वास- ये तीनों वस्तुएँ रहेंगी -- तब तक तुम्हें कोई भी दबा नहीं सकता। बच्चे, जब तक तुम्हारे हृदय में उत्साह एवं गुरू तथा ईश्वर में विश्वास - ये तीनों वस्तुएँ रहेंगी - तक तुम्हें कोई भी दबा नहीं सकता तब. मैं दिनोदिन अपने हृदय में शक्ति के विकास का अनुभव कर रहा हूँ। मैं दिनोदिन अपने हृदय में शक्ति के विकास का अनुभव कर रहा हूँ. हे साहसी बालकों, कार्य करते रहो। (वि.स.४/३३२) हे साहसी बालकों, कार्य करते रहो. (वि.स. 4 332 /)

किसी को उसकी योजनाओं में हतोत्साह नहीं करना चाहिए। किसी को उसकी योजनाओं में हतोत्साह नहीं करना चाहिए. आलोचना की प्रवृत्ति का पूर्णतः परित्याग कर दो। आलोचना की प्रवृत्ति का पूर्णतः परित्याग कर दो. जब तक वे सही मार्ग पर अग्रेसर हो रहे हैं; तब तक उन्के कार्य में सहायता करो; और जब कभी तुमको उनके कार्य में कोई ग़लती नज़र आये, तो नम्रतापूर्वक ग़लती के प्रति उनको सजग कर दो। जब तक वे सही मार्ग पर अग्रेसर हो रहे; हैं तब तक उन्के कार्य में सहायता करो; और जब कभी तुमको उनके कार्य में कोई ग़लती आये नज़र, तो नम्रतापूर्वक ग़लती के प्रति उनको सजग कर दो. एक दूसरे की आलोचना ही सब दोषों की जड है। एक दूसरे की आलोचना ही सब दोषों की जड है. किसी भी संगठन को विनष्ट करने में इसका बहुत बडा हाथ है। (वि.स.४/३१५) किसी भी संगठन को विनष्ट करने में इसका बहुत बडा हाथ है. (वि.स. 4 315 /)

किसी बात से तुम उत्साहहीन न होओ; जब तक ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर है, कौन इस पृथ्वी पर हमारी उपेक्षा कर सकता है? किसी बात से तुम उत्साहहीन न; होओ जब तक ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर है, कौन इस पृथ्वी पर हमारी उपेक्षा कर सकता है? यदि तुम अपनी अन्तिम साँस भी ले रहे हो तो भी न डरना। यदि तुम अपनी अन्तिम साँस भी ले रहे हो तो भी न डरना. सिंह की शूरता और पुष्प की कोमलता के साथ काम करते रहो। (वि.स. ४/३२०) सिंह की शूरता और पुष्प की कोमलता के साथ काम करते रहो. (वि.स. 4 320 /)

क्या तुम नहीं अनुभव करते कि दूसरों के ऊपर निर्भर रहना बुध्दिमानी नहीं है। क्या तुम नहीं अनुभव करते कि दूसरों के ऊपर निर्भर रहना बुध्दिमानी नहीं है. बुध्दिमान व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढता पूर्वक खडा होकर कार्य करना चहिए। बुध्दिमान व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढता पूर्वक खडा होकर कार्य करना चहिए. धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा। (वि.स. ४/३२८) धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा. (वि.स. 4 328 /)

बच्चे, जब तक हृदय में उत्साह एवं गुरू तथा ईश्वर में विश्वास - ये तीनों वस्तुएम रहेंगी - तब तक तुम्हें कोई भी दबा नहीं सकता। बच्चे, जब तक हृदय में उत्साह एवं गुरू तथा ईश्वर में विश्वास - ये तीनों वस्तुएम रहेंगी - सकता तब तक तुम्हें कोई भी दबा नहीं. मैं दिनोदिन अपने हृदय में शक्ति के विकास का अनुभव कर रहा हूँ। मैं दिनोदिन अपने हृदय में शक्ति के विकास का अनुभव कर रहा हूँ. हे साहसी बालकों, कार्य करते रहो। (वि.स. ४/३३२) हे साहसी बालकों, कार्य करते रहो. (वि.स. 4 332 /)

आओ हम नाम, यश और दूसरों पर शासन करने की इच्छा से रहित होकर काम करें। आओ हम नाम, यश और दूसरों पर शासन करने की इच्छा से रहित होकर करें काम. काम, क्रोध एंव लोभ -- इस त्रिविध बन्धन से हम मुक्त हो जायें और फिर सत्य हमारे साथ रहेगा। (वि.स. ४/३३८) काम, क्रोध एंव लोभ - इस त्रिविध बन्धन से हम मुक्त हो जायें और फिर सत्य हमारे साथ रहेगा. (वि.स. 4 338 /)

न टालो, न ढूँढों -- भगवान अपनी इच्छानुसार जो कुछ भेहे, उसके लिए प्रतिक्षा करते रहो, यही मेरा मूलमंत्र है। (वि.स. ४/३४८) न टालो, न ढूँढों - भगवान अपनी इच्छानुसार जो कुछ भेहे, उसके लिए प्रतिक्षा करते रहो, यही मेरा मूलमंत्र है. (वि.स. 4 348 /)

शक्ति और विशवास के साथ लगे रहो। सत्यनिष्ठा, पवित्र और निर्मल रहो, तथा आपस में न लडो। हमारी जाति का रोग ईर्ष्या ही है। (वि.स. ४/३६९)

एक ही आदमी मेरा अनुसरण करे, किन्तु उसे मृत्युपर्यन्त सत्य और विश्वासी होना होगा। मैं सफलता और असफलता की चिन्ता नहीं करता। मैं अपने आन्दोलन को पवित्र रखूँगा, भले ही मेरे साथ कोई न हो। कपटी कार्यों से सामना पडने पर मेरा धैर्य समाप्त हो जाता है। यही संसार है कि जिन्हें तुम सबसे अधिक प्यार और सहायता करो, वे ही तुम्हे धोखा देंगे। (वि.स. ४/३७७)